कानूनी शिक्षा का उद्देश्य: नागरिकों को स्वतंत्रता और समानता के प्रति प्रतिबद्ध बनाना

भारत के प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई ने कानूनी शिक्षा के महत्व पर जोर दिया, जिसमें नागरिकों को स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्शों के प्रति प्रतिबद्ध बनाना शामिल है। उन्होंने यह भी कहा कि कानून और न्याय तक पहुंच हर नागरिक के लिए होनी चाहिए, न कि कुछ लोगों का विशेषाधिकार। उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कानूनी शिक्षा को समाज के वास्तविक संघर्षों से जोड़ने की आवश्यकता पर बल दिया। इस लेख में इन महत्वपूर्ण विचारों का विस्तार से वर्णन किया गया है।
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कानूनी शिक्षा का उद्देश्य: नागरिकों को स्वतंत्रता और समानता के प्रति प्रतिबद्ध बनाना

कानूनी शिक्षा का व्यापक दृष्टिकोण

भारत के प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण बयान दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि कानून की शिक्षा का मुख्य उद्देश्य केवल वकीलों और न्यायाधीशों को तैयार करना नहीं है, बल्कि यह ऐसे नागरिकों का निर्माण करना भी है जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मूल्यों के प्रति समर्पित हों।


स्मारक व्याख्यान में विचार

प्रधान न्यायाधीश गवई ने विधिक और न्याय शिक्षा 2047: स्वतंत्रता के 100 वर्षों का एजेंडा विषयक पहले प्रोफेसर (डॉ.) एन आर माधव मेनन स्मारक व्याख्यान का उद्घाटन करते हुए इस बात पर जोर दिया कि कानून और न्याय तक पहुंच केवल कुछ लोगों का विशेषाधिकार नहीं होना चाहिए, बल्कि यह हर नागरिक के लिए एक वास्तविकता बननी चाहिए।


समाज के संघर्षों से जुड़ी कानूनी शिक्षा

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कानून का अध्ययन समाज के वास्तविक संघर्षों से अलग नहीं होना चाहिए। इसे उन लोगों के अनुभवों में समाहित होना चाहिए, जिनकी सेवा इसे करनी है। उन्होंने कहा कि कानूनी शिक्षा को लोकतांत्रिक बनाने के लिए, हमें उन अभिजात्य बाधाओं को तोड़ना होगा जो समय के साथ विकसित हुई हैं।