कांवड़ यात्रा 2025: तिथियाँ और महत्व

कांवड़ यात्रा का महत्व
सावन (या श्रावण) हिंदू कैलेंडर का सबसे शुभ महीना है, विशेषकर भगवान शिव के भक्तों के लिए। हर साल, सावन के महीने में, लाखों भक्त भगवान शिव की कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं, जो एक विशेष धार्मिक तीर्थयात्रा है।
इन भक्तों को कांवड़िया कहा जाता है, जो पैदल यात्रा करते हैं, जिसे अश्ते यात्रा भी कहा जाता है। वे 'हर हर महादेव' और 'बम बम भोले' के नारे लगाते हुए कई मीलों तक नंगे पैर चलते हैं। कांवड़िया पवित्र जल को एक सजाए गए बांस के डंडे पर दो बर्तनों में लेकर चलते हैं, जिसे कांवड़ कहा जाता है।
यह पवित्र जल हरिद्वार, गंगोत्री, गौमुख और अन्य नदियों से एकत्र किया जाता है, जो उत्तर भारत के धार्मिक स्थलों से है। जब कांवड़िया अपने गंतव्य पर पहुँचते हैं, तो वे अपने कांवड़ से जल निकालकर शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं।
कांवड़ यात्रा केवल एक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह भगवान शिव के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है और उनके आशीर्वाद की प्रार्थना का एक तरीका है। इस परंपरा की उत्पत्ति के बारे में कई कहानियाँ हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान परशुराम पहले कांवड़िया थे। वे भगवान शिव के भक्त थे और गंगा का जल शिवलिंग पर अर्पित करने लाए। यही इस परंपरा की शुरुआत थी, जो आज भी श्रद्धा और आध्यात्मिक तप के रूप में जारी है।
हिंदू धर्म में, कांवड़ यात्रा का आध्यात्मिक महत्व बहुत अधिक है। कहा जाता है कि जो कांवड़िया भक्ति के साथ यात्रा करते हैं, वे अपने पापों का प्रायश्चित कर सकते हैं और अपने जीवन में शांति, समृद्धि और खुशी प्राप्त कर सकते हैं। भगवान शिव भी उनकी इच्छाओं को पूरा करते हैं।
यात्रा के दौरान, भक्त ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, उपवास करते हैं और कठिन परिस्थितियों में लंबी दूरी तय करते हैं। कुछ प्राचीन ग्रंथों में लिखा गया है कि कांवड़ यात्रा करना अश्वमेध यज्ञ करने के समान है, और उन्हें कांवड़ यात्रा के लिए वही पुण्य प्राप्त होगा।
कांवड़ यात्रा 2025: तिथियाँ
कांवड़ यात्रा 2025: तिथियाँ
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, सावन का महीना 11 जुलाई से 9 अगस्त तक रहेगा। सावन शिवरात्रि 23 जुलाई को मनाई जाएगी। चतुर्दशी तिथि 24 जुलाई को सुबह 4:39 बजे शुरू होकर 2:28 बजे समाप्त होगी। भक्त 23 जुलाई को जलाभिषेक करेंगे, क्योंकि यह महीने का सबसे शुभ दिन है।