कांग्रेस में असंतोष: शशि थरूर और मनीष तिवारी को बोलने का मौका न मिलने पर उठे सवाल
कांग्रेस में शशि थरूर और मनीष तिवारी को लोकसभा में बोलने का अवसर न मिलने से पार्टी में असंतोष की स्थिति उत्पन्न हो गई है। मोदी सरकार द्वारा इन नेताओं को आतंकवाद पर बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल किए जाने के बाद से नाराजगी बढ़ी है। भाजपा ने इस मुद्दे पर कांग्रेस को घेरने की कोशिश की है, जबकि थरूर और तिवारी ने अपनी नाराज़गी व्यक्त की है। यह विवाद कांग्रेस की छवि पर नकारात्मक असर डाल सकता है। जानें इस मुद्दे की पूरी कहानी और कांग्रेस की प्रतिक्रिया।
Jul 29, 2025, 11:35 IST
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कांग्रेस में बढ़ता असंतोष
पहलगाम में हुए आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर पर चल रही लोकसभा की बहस में कांग्रेस सांसद शशि थरूर और मनीष तिवारी को बोलने का अवसर न मिलने से पार्टी में असंतोष की स्थिति उत्पन्न हो गई है। यह ध्यान देने योग्य है कि मोदी सरकार ने जब इन नेताओं को आतंकवाद पर वैश्विक जनमत तैयार करने के लिए बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया था, तभी से कांग्रेस इनसे नाराज चल रही है।
पार्टी नेतृत्व की आपत्ति
कांग्रेस नेतृत्व ने पहले इस निर्णय पर आपत्ति जताई थी कि थरूर और तिवारी को प्रतिनिधिमंडल में क्यों रखा गया। अब, संसद में इन दोनों को बोलने का मौका न देने से यह सवाल उठने लगा है कि क्या कांग्रेस अपनी ही सक्षम आवाजों को दबा रही है। यह कदम न केवल पार्टी के अंदरूनी असंतोष को उजागर कर रहा है, बल्कि भाजपा को भी कांग्रेस पर हमला करने का मौका दे रहा है। भाजपा सांसद बैजयंत पांडा ने कहा कि कांग्रेस जानबूझकर थरूर को बोलने नहीं दे रही है, लेकिन उन्होंने यह भी जोड़ा कि “राष्ट्रीय हित में थरूर को कोई नहीं रोक सकता।”
थरूर और तिवारी की प्रतिक्रिया
इस विवाद पर शशि थरूर ने मीडिया से बात करने से परहेज़ किया और केवल एक शब्द में कहा— “मौनव्रत।” वहीं, मनीष तिवारी ने सोशल मीडिया पर एक देशभक्ति गीत की पंक्तियाँ साझा कर अपनी नाराज़गी को व्यक्त किया। उन्होंने लिखा- "है प्रीत जहाँ की रीत सदा, मैं गीत वहाँ के गाता हूँ, भारत का रहने वाला हूँ, भारत की बात सुनाता हूँ।" तिवारी का यह संदेश इस बात का संकेत है कि वे पार्टी के इस निर्णय से असंतुष्ट हैं।
आंतरिक प्रणाली और आलोचना
सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस में सांसदों को विभिन्न विषयों पर बोलने का अवसर देने के लिए एक आंतरिक प्रणाली है। इसी नीति के तहत शशि थरूर को बंदरगाह विधेयक पर बोलने के लिए कहा गया, जो उनके निर्वाचन क्षेत्र के विझिंजम पोर्ट से संबंधित है। मनीष तिवारी को आगामी खेल विधेयकों पर बोलने का जिम्मा सौंपा गया है। हालांकि, यह तर्क पार्टी के निर्णय पर उठ रहे सवालों को शांत करने में सफल नहीं हो पा रहा है। आलोचकों का कहना है कि थरूर और तिवारी जैसे अनुभवी वक्ताओं को राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दों पर बोलने का अवसर मिलना चाहिए था।
कांग्रेस की छवि पर प्रभाव
यह विवाद कांग्रेस की छवि पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। भाजपा इस मुद्दे पर कांग्रेस को घेरने की कोशिश कर रही है, जबकि पार्टी के अंदर भी असंतोष की आवाजें सुनाई दे रही हैं। यदि कांग्रेस अपने वरिष्ठ नेताओं को किनारे करती है, तो यह पार्टी की एकता और विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर सकता है। कांग्रेस का कहना है कि थरूर को संसदीय बहस में बोलने का आग्रह किया गया था, लेकिन उन्होंने उस समय प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया था।
भविष्य की संभावनाएँ
हालांकि, पहलगाम आतंकी हमला और ऑपरेशन सिंदूर पर बहस राष्ट्रीय सुरक्षा का गंभीर विषय है। ऐसे में कांग्रेस द्वारा थरूर और तिवारी जैसे वरिष्ठ नेताओं को बोलने का अवसर न देना न केवल पार्टी की रणनीतिक चूक है, बल्कि यह भाजपा को हमले का आसान मौका भी दे रहा है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस इस विवाद को कैसे संभालती है और क्या वह अपने अंदरूनी असंतोष को दूर कर पाएगी।