कश्मीर में हिंदुओं का पलायन: 4 जनवरी की काली रात की यादें

4 जनवरी 1990 को कश्मीर में हिज्बुल मुजाहिदीन द्वारा जारी चेतावनी ने हिंदुओं के लिए एक भयावह स्थिति उत्पन्न कर दी थी। इस दिन के बाद लाखों कश्मीरी हिंदुओं ने अपने घरों को छोड़ने का निर्णय लिया। इस लेख में हम उस समय की घटनाओं, आतंकियों की गतिविधियों और कश्मीरी पंडितों के दर्दनाक पलायन की कहानी को देखेंगे। जानिए कैसे एक समुदाय ने अपनी जान बचाने के लिए सब कुछ छोड़ दिया।
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कश्मीर में हिंदुओं का पलायन: 4 जनवरी की काली रात की यादें

कश्मीर में आतंक का दौर


4 जनवरी 1990 को कश्मीर के एक स्थानीय समाचार पत्र 'आफ़ताब' ने हिज्बुल मुजाहिदीन द्वारा जारी एक चेतावनी का प्रकाशन किया, जिसमें सभी हिंदुओं को कश्मीर छोड़ने का आदेश दिया गया था.


इसी तरह की एक और सूचना 'अल-सफा' नामक अखबार में भी छपी थी. उल्लेखनीय है कि हिज्बुल मुजाहिदीन का गठन 1989 में जम्मू और कश्मीर में अलगाववादी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए किया गया था.


इस चेतावनी के प्रकाशन के बाद कश्मीर घाटी में हिंदुओं के बीच हड़कंप मच गया. आतंकियों और कट्टरपंथियों ने सड़कों पर आकर भारत विरोधी नारे लगाते हुए हिंसा का तांडव किया. कश्मीर की शांतिपूर्ण छवि को धूमिल कर दिया गया.


धमाकों की आवाजें गूंजने लगीं, मस्जिदों से भड़काऊ भाषण सुनाई देने लगे, और दीवारों पर पोस्टर चस्पा कर दिए गए, जिनमें कश्मीरी हिंदुओं को इस्लाम का पालन करने का आदेश दिया गया. उस समय के मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला की सरकार इस स्थिति को संभालने में असफल रही.


दुकानों और प्रतिष्ठानों पर नोटिस चस्पा किए गए, जिसमें लिखा था कि या तो 24 घंटे के भीतर कश्मीर छोड़ दें या फिर मौत के लिए तैयार रहें. आतंकियों ने मानवता की सभी सीमाएं पार कर दीं, यहां तक कि अंग-विच्छेदन जैसे जघन्य कृत्य भी किए.


19 जनवरी की रात, लाखों कश्मीरी हिंदुओं ने अपने घरों और खेती-बाड़ी को छोड़कर पलायन का निर्णय लिया, जिससे लगभग 3,50,000 लोग विस्थापित हो गए.


इससे पहले, जेकेएलएफ ने भारतीय जनता पार्टी के नेता पंडित टीकालाल टपलू की 14 सितंबर 1989 को हत्या की थी, जिसके बाद कई कश्मीरी हिंदुओं की नृशंस हत्या की गई.


पलायन के पांच साल बाद तक, कश्मीरी हिंदुओं में से लगभग 5500 लोग विभिन्न शिविरों में काल का ग्रास बन गए, जिनमें से कई की मृत्यु गर्मी और अन्य कारणों से हुई.


कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के बुरे दिनों की शुरुआत 14 सितंबर 1989 से हुई, जब तिलक लाल तप्लू की हत्या की गई.