कर्नाटक में जातिगत सर्वेक्षण की शुरुआत, 60 सवालों का सामना करेंगी 7 करोड़ लोग

कर्नाटक में आज से जातिगत सर्वेक्षण की प्रक्रिया शुरू हो रही है, जिसमें 7 करोड़ नागरिकों से 60 से अधिक सवाल पूछे जाएंगे। इस सर्वेक्षण को लेकर राजनीतिक विवाद भी उठ खड़ा हुआ है, जिसमें विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि यह हिंदू समुदाय में विभाजन की कोशिश है। जानें इस सर्वेक्षण की प्रक्रिया, खर्च और पिछले अनुभव के बारे में। क्या यह सर्वेक्षण सफल होगा? जानने के लिए पढ़ें पूरा लेख।
 | 
कर्नाटक में जातिगत सर्वेक्षण की शुरुआत, 60 सवालों का सामना करेंगी 7 करोड़ लोग

जातिगत सर्वेक्षण का आगाज

कर्नाटक में जातिगत सर्वेक्षण की शुरुआत, 60 सवालों का सामना करेंगी 7 करोड़ लोग

आज से शुरू होगा जाति सर्वेक्षण

कर्नाटक में आज (22 सितंबर) से जातिगत सर्वेक्षण की प्रक्रिया आरंभ हो रही है। इस सर्वेक्षण को लेकर प्रदेश में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। विपक्षी दलों का आरोप है कि कांग्रेस इस सर्वे के माध्यम से हिंदू समुदाय में विभाजन की कोशिश कर रही है। इस सर्वे में 7 करोड़ नागरिकों से 60 से अधिक सवालों का उत्तर लिया जाएगा, जिसमें 1,75,000 कर्मचारी शामिल होंगे।

यह जातिगत सर्वेक्षण 22 सितंबर से 7 अक्टूबर तक चलेगा। इस विवाद के बीच, सिद्धारमैया सरकार ने 20 सितंबर को 57 ईसाई उपजातियों को मुख्य श्रेणी की सूची से हटाने का निर्णय लिया है। इसके अलावा, अन्य राज्यों के सर्वेक्षणों का भी उल्लेख किया जा रहा है, जहां आधी जनसंख्या के बावजूद 65 दिन का समय लिया गया था।

जनता दल (सेक्युलर) के नेता एचडी कुमारस्वामी ने इस सर्वेक्षण को स्थगित करने की मांग की है और सरकार को सलाह दी है कि इसे तीन महीनों में चरणबद्ध तरीके से किया जाए।

सर्वेक्षण की प्रक्रिया

कर्नाटक में यह सर्वेक्षण 22 सितंबर से 7 अक्टूबर तक चलेगा, जिसमें लगभग 420 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। इसे 1,75,000 लोग संचालित करेंगे, जिनमें से अधिकांश स्कूलों के शिक्षक हैं। ये शिक्षक प्रदेश के 2 करोड़ घरों में लगभग 7 करोड़ लोगों को एक फॉर्म देंगे, जिसमें 60 सवाल पूछे जाएंगे।

आयोग के अध्यक्ष मधुसूदन आर. ने कहा कि आम जनता में किसी प्रकार की भ्रांति न हो, इसके लिए यह सूची केवल हमारे उपयोग के लिए होगी। हालांकि, व्यक्ति अपनी इच्छा से सर्वेयर को बता सकता है कि वह किसी विशेष जाति से संबंधित है।

बीसी आयोग के अध्यक्ष मधुसूदन आर. नाइक ने कहा कि हम जल्द से जल्द सर्वेक्षण पूरा करने का प्रयास कर रहे हैं और हमारा लक्ष्य नवंबर तक रिपोर्ट प्रस्तुत करना है।

सर्वेक्षण की विशेषताएँ

यह आयोग द्वारा किया जा रहा दूसरा सामाजिक-शैक्षणिक सर्वेक्षण है। इससे पहले 2015 में एच. कंथराज आयोग द्वारा पहला सर्वेक्षण किया गया था।

आयोग के अधिकारियों ने बताया कि नए सर्वेक्षण के दौरान, हर घर को बिजली मीटर नंबर के माध्यम से जियो-टैग किया जाएगा। इसके साथ ही हर घर को एक विशेष आईडी दी जाएगी। राशन कार्ड और आधार विवरण मोबाइल नंबरों से जोड़े जाएंगे, और एक हेल्पलाइन तथा ऑनलाइन भागीदारी विकल्प भी उपलब्ध कराए जाएंगे।

पिछले सर्वेक्षण का अनुभव

कर्नाटक में इसी तरह का सर्वेक्षण 2015 में भी हुआ था, जिसमें विवाद उत्पन्न हुआ था। उस समय लिंगायत (9.8%) और वोक्कालिगा (8.2%) जैसी प्रमुख जातियों की जनसंख्या अनुमान से कम बताई गई थी, जिसके कारण विरोध प्रदर्शन हुए थे। पिछली बार के सर्वेक्षण में 54 प्रश्न पूछे गए थे, जबकि इस बार 60 से अधिक सवाल पूछे जाएंगे।