कर्नाटक में गणेश विसर्जन के दौरान झड़पों ने राजनीतिक माहौल को गरमा दिया

मांड्या में झड़पों का प्रभाव
कर्नाटक के मांड्या जिले में गणेश विसर्जन के दौरान हुई झड़पों ने न केवल राज्य की कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं, बल्कि कांग्रेस सरकार की नीतियों पर भी गंभीर चर्चा शुरू कर दी है। भाजपा के नेता लगातार यह आरोप लगा रहे हैं कि कांग्रेस सरकार तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है, जिससे सांप्रदायिक उपद्रवियों का मनोबल बढ़ा है और हिंदू समुदाय में असुरक्षा की भावना गहरी होती जा रही है।
अन्य स्थानों पर भी हुईं घटनाएं
मांड्या से पहले, हुबली, शिवमोग्गा और धारवाड़ में भी हिंदू धार्मिक आयोजनों के दौरान उपद्रव और पथराव की घटनाएं सामने आई थीं। विपक्ष का आरोप है कि सरकार हर बार दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने में ढिलाई बरतती है। भाजपा नेताओं का यह भी कहना है कि पुलिस अक्सर हिंदू समुदाय के खिलाफ सख्ती दिखाती है, जबकि उपद्रवियों के प्रति नरमी बरती जाती है। इससे 'पक्षपातपूर्ण पुलिसिंग' की छवि बन गई है।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप
मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और उनकी सरकार पर यह आरोप भी लगाया जा रहा है कि वे वोट बैंक की राजनीति के लिए अल्पसंख्यकों को खुली छूट देते हैं। विपक्ष का कहना है कि इसी कारण 'पाकिस्तान जिंदाबाद' जैसे नारे लगाने वालों पर भी कड़ी कार्रवाई नहीं की गई।
भाजपा का आक्रामक रुख
मांड्या की घटना ने हिंदू संगठनों और भाजपा को जनता के बीच आक्रामक नैरेटिव पेश करने का अवसर प्रदान किया है। 'जय श्रीराम' के नारों और भगवा ध्वजों के साथ हुए विरोध प्रदर्शनों ने इस विवाद को सांस्कृतिक-धार्मिक पहचान की लड़ाई का रूप दे दिया है। भाजपा इसे 'हिंदुओं को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने की साजिश' करार देकर बहुसंख्यक समाज को एकजुट करने की कोशिश कर रही है।
भविष्य की राजनीतिक चुनौतियाँ
कांग्रेस सरकार पर तुष्टिकरण के आरोप भाजपा को 2028 के विधानसभा चुनावों तक एक मजबूत राजनीतिक हथियार मुहैया करा सकते हैं। ग्रामीण और शहरी कर्नाटक, विशेषकर मांड्या, हुबली और शिवमोग्गा जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में हिंदूवादी ताकतों का सामाजिक आधार और व्यापक हो सकता है। यदि सरकार लगातार कठोर कार्रवाई करने में विफल रहती है, तो यह धारणा और गहरी होगी कि कांग्रेस केवल सत्ता बचाने के लिए वोट बैंक की राजनीति कर रही है।
कर्नाटक की राजनीति में बदलाव
मांड्या की घटना केवल एक स्थानीय सांप्रदायिक झड़प नहीं है। यह कर्नाटक की राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है। कांग्रेस सरकार को अब यह तय करना होगा कि वह कानून-व्यवस्था और धार्मिक आयोजनों की सुरक्षा को प्राथमिकता देकर तुष्टिकरण की छवि से बाहर आती है या फिर भाजपा और हिंदूवादी संगठनों के लिए एक स्थायी मुद्दा छोड़ती है। यह घटनाक्रम दर्शाता है कि दक्षिण भारत में भी धार्मिक पहचान और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति तेजी से गहरी पकड़ बना रही है।