औरंगजेब की कब्र ध्वस्त करने की मांग: सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विश्लेषण

मुगल सम्राट औरंगजेब की कब्र को ध्वस्त करने की मांग के बीच सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का महत्व समझना आवश्यक है। अदालत ने कहा है कि अनुच्छेद 21 का अधिकार मृत्यु के बाद भी लागू होता है। इस लेख में हम दोषीपुरा मामले और अन्य महत्वपूर्ण निर्णयों पर चर्चा करेंगे, जो कब्र हटाने की मांग से जुड़े हैं। जानें कि सुप्रीम कोर्ट ने कब्रों को हटाने की अनुमति कब दी और किन परिस्थितियों में ऐसा किया जा सकता है।
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सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण

औरंगजेब की कब्र ध्वस्त करने की मांग: सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विश्लेषण

कुछ हिंदू संगठनों द्वारा औरंगजेब की कब्र को ध्वस्त करने की मांग उठाई जा रही है।

मुगल सम्राट औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग के बीच यह जानना महत्वपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या निर्णय लेता है। अदालत ने एक फैसले में कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों को जो अधिकार प्राप्त हैं, वे केवल जीवन के दौरान ही नहीं, बल्कि मृत्यु के बाद भी लागू होते हैं। देश में कब्र हटाने के लिए कोई स्पष्ट कानून नहीं है, लेकिन कानून प्रवर्तन एजेंसियां भारतीय न्याय संहिता की धारा 157(3) के तहत न्यायालय से अनुमति मांग सकती हैं। हालांकि, यह प्रक्रिया सरल नहीं है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़कर ऐसा करने की अनुमति नहीं दी है।

2022 में “मोहम्मद लतीफ मगरे बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर” मामले में, सरकारी अधिकारियों ने मृतक के शव को उसके परिवार को सौंपने से इनकार किया था। इस मामले में कोर्ट ने दफनाए गए शव को निकालने के कानूनी प्रावधानों, धार्मिक अधिकारों और मौलिक अधिकारों पर चर्चा की। कोर्ट ने यह भी कहा कि गरिमा का अधिकार केवल जीवन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मृत्यु के बाद भी बना रहता है। उत्तर प्रदेश का दोषीपुरा मामला इस संदर्भ में ऐतिहासिक है।

दोषीपुरा का ऐतिहासिक मामला

कुछ मामलों में न्यायालय ने जनहित के कारण कब्र हटाने की अनुमति दी है, लेकिन यूपी के दोषीपुरा में सुप्रीम कोर्ट का आदेश कानून व्यवस्था के कारण लागू नहीं हो सका। यह मामला 1870 के दशक से शुरू हुआ और 1981 में फैसला सुनाया गया, जो अब तक लागू नहीं हुआ।

इस विवाद में नौ भूखंड शामिल हैं, जिन पर शिया और सुन्नी दोनों समुदायों का दावा है। 1981 में सुप्रीम कोर्ट ने शियाओं के अधिकारों को मान्यता दी थी और विवादित भूखंडों के चारों ओर चारदीवारी बनाने का आदेश दिया था, लेकिन यह आदेश कानून व्यवस्था के कारण लागू नहीं हो सका।

सुप्रीम कोर्ट के अन्य महत्वपूर्ण निर्णय

1995 में “पंडित परमानंद कटारा बनाम भारत संघ” में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 21 के तहत मृतकों को भी गरिमापूर्ण व्यवहार का अधिकार है। 2002 में “अश्रय अधिकार अभियान बनाम भारत सरकार” में भी कोर्ट ने कहा कि बेघर मृतकों को गरिमापूर्ण अंतिम संस्कार का अधिकार है। इसी तरह, “रामजी सिंह बनाम उत्तर प्रदेश” में सर्वोच्च अदालत ने कहा कि मृत शरीर को भी वही सम्मान मिलना चाहिए जो जीवित व्यक्ति को मिलता है।

सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ

1. सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 176(3) का विश्लेषण किया है, जो किसी अपराध की जांच के लिए शव निकालने की अनुमति देती है।

2. जब हत्या या संदिग्ध मृत्यु का संदेह हो, तब शव निकाला जा सकता है, लेकिन यह कोई मौलिक अधिकार नहीं है।

3. सुप्रीम कोर्ट ने 1904 के अमेरिकी केस पेटीग्रो बनाम पेटीग्रो का हवाला दिया है, जिसमें कहा गया कि कब्र से शव को तभी निकाला जाना चाहिए, जब उसके लिए ठोस कारण हो।

4. 1984 के गुलाम अब्बास बनाम उत्तर प्रदेश सरकार मामले में, कोर्ट ने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार लोक व्यवस्था और नैतिकता के अधीन है।

5. 2011 के मोहम्मद हमीद बनाम बड़ी मस्जिद ट्रस्ट मामले में, कोर्ट ने कहा कि दफनाए गए शव को बिना उचित कारण के नहीं निकाला जा सकता।