एम्स में पहला सफल रोबोटिक किडनी ट्रांसप्लांट, मरीजों की तेजी से हो रही रिकवरी

एम्स नई दिल्ली ने देश के पहले सरकारी अस्पताल के रूप में रोबोटिक किडनी ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया शुरू की है। इस तकनीक से मरीजों की रिकवरी तेजी से हो रही है, जहां मैनुअल ट्रांसप्लांट की तुलना में कम समय और लागत लगती है। जानें इस नई तकनीक के लाभ और सर्जरी की प्रक्रिया के बारे में।
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एम्स में पहला सफल रोबोटिक किडनी ट्रांसप्लांट, मरीजों की तेजी से हो रही रिकवरी

रोबोटिक किडनी ट्रांसप्लांट की नई शुरुआत

एम्स में पहला सफल रोबोटिक किडनी ट्रांसप्लांट, मरीजों की तेजी से हो रही रिकवरी

रोबोटिक किडनी ट्रांसप्लांटImage Credit source: Getty Images

किडनी ट्रांसप्लांट को आमतौर पर एक जटिल सर्जरी माना जाता है, जिसमें कई तकनीकी प्रक्रियाएं शामिल होती हैं। डॉ. बी. के. बंसल, जो एम्स नई दिल्ली के सर्जरी विभाग के प्रमुख हैं, ने एक मीडिया चैनल के साथ बातचीत में बताया कि यह देश का पहला सरकारी अस्पताल है, जहां रोबोटिक तकनीक से किडनी ट्रांसप्लांट किया गया है।

उन्होंने यह भी बताया कि अब तक एम्स में पांच मरीजों का रोबोटिक किडनी ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक किया गया है। इनमें से चार मरीज स्वस्थ होकर घर लौट चुके हैं, जबकि एक मरीज अभी अस्पताल में है और उसे भी जल्द ही छुट्टी मिल जाएगी।

मैनुअल और रोबोटिक ट्रांसप्लांट में अंतर

डॉ. वी.के. बंसल ने स्पष्ट किया कि मैनुअल ट्रांसप्लांट में मरीज को ठीक होने में लगभग 10 दिन लगते हैं, जबकि रोबोटिक ट्रांसप्लांट के बाद मरीज केवल 5 दिन में डिस्चार्ज हो जाता है। उन्होंने कहा कि यदि सुबह ट्रांसप्लांट किया गया है, तो मरीज शाम को अपने पैरों पर चल सकता है, जो कि तेजी से रिकवरी का संकेत है।

रोबोटिक किडनी ट्रांसप्लांट की लागत

डॉक्टरों के अनुसार, निजी अस्पतालों में किडनी ट्रांसप्लांट की लागत लगभग 25 लाख रुपये होती है। डॉ. ओम प्रकाश ने बताया कि एम्स में यह प्रक्रिया केवल 25,000 रुपये में की जा सकती है। उन्होंने यह भी बताया कि मैनुअल ऑपरेशन में लगभग 40 स्टिच लगते हैं, जबकि रोबोटिक ट्रांसप्लांट में केवल 10 स्टिच की आवश्यकता होती है।

सर्जरी में लगने वाला समय

डॉ. ओम प्रकाश ने बताया कि एम्स में रोबोटिक सर्जरी के माध्यम से किडनी ट्रांसप्लांट में लगभग 4 से 5 घंटे का समय लगता है। इस प्रक्रिया में बटनहोल तकनीक का उपयोग किया जाता है, जिससे संक्रमण का खतरा कम हो जाता है। मरीज को सामान्य ऑपरेशन की तुलना में 10 गुना कम दर्द होता है और डिस्चार्ज होने में लगभग 5 दिन कम लगते हैं।