एनसीईआरटी की नई किताबों में मुगलों की भूमिका पर बदलाव

एनसीईआरटी ने अपनी पाठ्यपुस्तकों में मुगलों की भूमिका को नए दृष्टिकोण से पेश किया है। अब अकबर और अन्य मुगलों के अच्छे कार्यों के साथ-साथ उनकी क्रूरता का भी उल्लेख किया जाएगा। इस बदलाव ने राजनीतिक विवाद को जन्म दिया है, जिसमें विपक्षी दल सरकार की आलोचना कर रहे हैं। नई किताब में भारतीय विरासत और रानी दुर्गावती जैसे ऐतिहासिक व्यक्तित्वों का भी उल्लेख है।
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एनसीईआरटी की नई किताबों में मुगलों की भूमिका पर बदलाव

मुगलों का इतिहास अब नए दृष्टिकोण से

पारंपरिक रूप से, इस देश की पाठ्यपुस्तकों में अकबर और बाबर को महान व्यक्तित्व के रूप में प्रस्तुत किया जाता था। लेकिन अब, एनसीईआरटी ने अपनी किताबों में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। उन्होंने कहा है कि मुगलों द्वारा किए गए अच्छे कार्यों के साथ-साथ उनकी क्रूरता को भी पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा। इसका मतलब यह है कि अकबर को केवल महान नहीं बताया जाएगा, बल्कि यह भी बताया जाएगा कि महिलाओं को जजिया टैक्स का भुगतान करना पड़ता था। इस बदलाव के चलते एक नया विवाद भी उत्पन्न हो गया है, जिसमें विपक्षी राजनीतिक दल सरकार को इस निर्णय के लिए आलोचना कर रहे हैं।


मुगल शासकों की भूमिका पर संतुलित दृष्टिकोण

एनसीईआरटी की 8वीं कक्षा की सामाजिक विज्ञान की नई किताब में अलाउद्दीन खिलजी और मुगल शासकों जैसे अकबर और औरंगजेब के विभिन्न पहलुओं का उल्लेख किया गया है। एनसीईआरटी का कहना है कि इस किताब में मुगलों के योगदानों के साथ-साथ उनकी लूटपाट पर भी संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है। इसके साथ ही, महाराणा प्रताप, कृष्णदेवराय और नरसिंहदेव के नेतृत्व में हुए आक्रमणों का भी उल्लेख किया गया है। 'एक्सप्लोरिंग सोसायटीः इंडिया एंड बियॉन्ड' नामक किताब में यह बताया गया है कि अकबर का शासन 'क्रूरता' और 'सहिष्णुता' का मिश्रण था।


भारतीय विरासत की झलक

नई किताब में भारतीय विरासत और लोकाचार की गहरी जड़ें भी दर्शाई गई हैं। इसमें भारतीय इतिहास के कठिन समय का उल्लेख किया गया है। रानी दुर्गावती, जो 16वीं शताब्दी की एक शासक थीं, ने मुगलों के खिलाफ अपने राज्य की रक्षा के लिए संघर्ष किया और उन्हें भारतीय इतिहास में एक साहसी योद्धा के रूप में जाना जाता है। किताब के एक अध्याय में रानी दुर्गावती के बारे में जानकारी दी गई है। यह किताब छात्रों को दिल्ली सल्तनत, मुगलों, मराठों और औपनिवेशिक युग से परिचित कराती है।


अकबर का शासन: क्रूरता और सहिष्णुता का मिश्रण

एनसीईआरटी की किताब में अकबर के शासनकाल को विभिन्न धर्मों के प्रति क्रूरता और सहिष्णुता का मिश्रण बताया गया है। चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी के बाद, अकबर को लगभग 30,000 नागरिकों के नरसंहार का आदेश देने वाला बताया गया है। किताब में जजिया कर का भी उल्लेख किया गया है, जिसे कुछ सुल्तानों ने गैर-मुस्लिम प्रजा पर लगाया था। यह कर सार्वजनिक अपमान का कारण बनता था और प्रजा को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए वित्तीय एवं सामाजिक प्रोत्साहन देता था।