उपराष्ट्रपति धनखड़ का संविधान पर महत्वपूर्ण बयान

संविधान की प्रस्तावना का महत्व
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को कहा कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना बच्चों के लिए माता-पिता के समान है और इसे बदलना असंभव है, चाहे कितनी भी कोशिश की जाए। उन्होंने बताया कि राष्ट्रपति और राज्यपाल ही ऐसे संवैधानिक पद हैं जो उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, संसद और विधानसभा के सदस्यों तथा न्यायाधीशों से अलग शपथ लेते हैं। सभी अन्य पदाधिकारी संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं, जबकि राष्ट्रपति और राज्यपाल इसे संरक्षित, सुरक्षित और बचाने की शपथ लेते हैं। इस प्रकार, उनकी शपथ न केवल भिन्न है, बल्कि यह उन्हें संविधान की रक्षा के लिए बाध्य भी करती है।
संविधान में बदलाव का इतिहास
कोच्चि में नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एडवांस्ड लीगल स्टडीज (एनयूएएलएस) में छात्रों और शिक्षकों के साथ बातचीत करते हुए, उन्होंने कहा कि किसी भी देश की प्रस्तावना में ऐतिहासिक रूप से बदलाव नहीं किया गया है। हालांकि, उन्होंने इस बात पर खेद व्यक्त किया कि आपातकाल के दौरान भारतीय संविधान की प्रस्तावना में परिवर्तन किया गया था। उन्होंने कहा कि संविधान की प्रस्तावना को लेकर कई विवाद रहे हैं और यह बच्चों के लिए माता-पिता के समान है।
न्यायपालिका पर भरोसा
धनखड़ ने न्यायपालिका पर लोगों के भरोसे और सम्मान की बात की। उन्होंने कहा कि लोग न्यायपालिका पर उतना भरोसा करते हैं जितना किसी अन्य संस्था पर नहीं। यदि इस संस्था पर विश्वास खत्म हो जाता है, तो देश गंभीर संकट का सामना कर सकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि न्यायपालिका, कार्यपालिका या विधायिका एक-दूसरे के क्षेत्राधिकार में हस्तक्षेप करती हैं, तो इससे लोकतंत्र को खतरा हो सकता है।
शक्तियों का पृथक्करण
उपराष्ट्रपति ने यह भी स्पष्ट किया कि न्याय-निर्णय केवल न्यायपालिका के भीतर होना चाहिए। निर्णय न्यायपालिका द्वारा ही लिखे जाने चाहिए, न कि विधायिका या कार्यपालिका द्वारा। कार्यकारी कार्यों को कार्यकारी द्वारा ही किया जाना चाहिए, क्योंकि राजनीतिक कार्यकारी चुनावों के माध्यम से चुने जाते हैं और उन्हें जनता के प्रति जवाबदेह होना चाहिए। यदि कार्यकारी कार्य विधायिका या न्यायपालिका द्वारा किए जाते हैं, तो यह शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के खिलाफ होगा।