उपराष्ट्रपति धनखड़ का संविधान की प्रस्तावना पर बयान
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संविधान की प्रस्तावना में किसी भी बदलाव की आवश्यकता को नकारते हुए कहा कि यह मूल तत्व है जिस पर संविधान आधारित है। उन्होंने 1976 में जोड़े गए 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों पर चर्चा की और आरएसएस द्वारा की गई समीक्षा की आलोचना की। जानें इस मुद्दे पर उनके विचार और राजनीतिक विवाद के संदर्भ में क्या कहा गया।
Jun 28, 2025, 13:39 IST
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संविधान की प्रस्तावना में बदलाव की आवश्यकता नहीं
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को स्पष्ट किया कि संविधान की प्रस्तावना में कोई भी संशोधन नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह उस मूल तत्व का प्रतिनिधित्व करती है जिस पर पूरा संविधान आधारित है। उन्होंने यह भी बताया कि भारत के अलावा किसी अन्य देश में संविधान की प्रस्तावना में बदलाव नहीं किया गया है। हालांकि, उन्होंने यह स्वीकार किया कि 1976 में 42वें संविधान संशोधन के तहत इस प्रस्तावना में 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' और 'अखंडता' जैसे शब्द जोड़े गए थे।
धनखड़ ने इस मुद्दे पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि बी आर अंबेडकर ने संविधान के निर्माण में बहुत मेहनत की थी और निश्चित रूप से इस पर ध्यान दिया होगा। उनकी टिप्पणी उस समय आई जब आरएसएस ने संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों की समीक्षा करने का आह्वान किया था। आरएसएस का कहना है कि ये शब्द आपातकाल के दौरान जोड़े गए थे और अंबेडकर द्वारा तैयार संविधान का हिस्सा नहीं थे।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबोले द्वारा इस विषय पर राष्ट्रीय बहस के आह्वान की आलोचना की है। उन्होंने इसे 'राजनीतिक अवसरवाद' और संविधान की आत्मा पर जानबूझकर किया गया हमला बताया है। आपातकाल के दौरान जोड़े गए इन शब्दों की समीक्षा के लिए होसबोले की मांग ने राजनीतिक विवाद को जन्म दिया है। आरएसएस से जुड़ी एक पत्रिका में प्रकाशित लेख में कहा गया है कि यह संविधान को समाप्त करने का प्रयास नहीं है, बल्कि कांग्रेस की आपातकाल-युग की नीतियों की विकृतियों से संविधान की मूल भावना को बहाल करने का प्रयास है।