उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा: स्वास्थ्य या राजनीतिक असहमति?

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दिया, लेकिन राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि उनके इस्तीफे के पीछे गहरी असहमति हो सकती है। उनकी कुछ निर्णय सरकार की प्राथमिकताओं के खिलाफ थे, जिससे मतभेद बढ़े। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा की विवादास्पद टिप्पणी ने स्थिति को और स्पष्ट किया। क्या उपराष्ट्रपति को अपने विवेक से काम करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए? यह घटनाक्रम संवैधानिक अधिकारों और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों पर गंभीर प्रश्न उठाता है।
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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा: स्वास्थ्य या राजनीतिक असहमति?

धनखड़ का इस्तीफा और उसके पीछे की वजहें

21 जुलाई 2025 को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जबकि उनके कार्यकाल में अभी दो साल बाकी थे। हालांकि, राजनीतिक हलकों में यह चर्चा तेज हो गई है कि उनके इस्तीफे के पीछे कोई गंभीर मुद्दा हो सकता है, जैसे कि 'सीमा-उल्‍लंघन' या अन्य नियमों का उल्लंघन। बताया जा रहा है कि धनखड़ ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ विपक्ष के प्रस्ताव को बिना सरकार को सूचित किए स्वीकार कर लिया था, जिससे केंद्र सरकार नाराज़ हो गई थी। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, कई मंत्रियों ने संकेत दिया है कि धनखड़ ने कई बार अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर निर्णय लिए हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि स्वास्थ्य का बहाना शायद केवल एक सामान्य कारण था, जबकि असल में राजनीतिक मतभेदों के चलते उनका इस्तीफा हुआ है।


सदन में हंगामा और नड्डा की टिप्पणी

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सोमवार को सदन में विपक्ष के हंगामे के बीच एक विवादास्पद टिप्पणी की थी, जिसमें उन्होंने कहा, “Nothing will go on record, only what I say will go on record.” इसका अर्थ था कि केवल उनकी कही गई बातें ही रिकॉर्ड पर जाएंगी। यह टिप्पणी सीधे तौर पर राजसभा अध्यक्ष को निर्देशित करती हुई प्रतीत हुई, जिससे विपक्ष ने इसे 'आसन के लिए अपमान' करार दिया। नड्डा की इस टिप्पणी से यह स्पष्ट होता है कि उन्हें धनखड़ के इस्तीफे की जानकारी थी या उन्हें ऐसा करने के लिए कहा गया था। इसके बाद उपराष्ट्रपति की अध्यक्षता में कार्यों का निर्धारण करने वाली समिति की दो बैठकें हुईं, जिसमें नड्डा और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू अनुपस्थित रहे, जो सरकार और उपराष्ट्रपति के बीच मतभेदों का संकेत देता है।


धनखड़ के निर्णय और राजनीतिक असहमति

हाल के घटनाक्रमों से यह भी स्पष्ट हुआ है कि धनखड़ ने कुछ ऐसे संसदीय निर्णय लिए जो सरकार की राजनीतिक प्राथमिकताओं के खिलाफ थे। उनके इस्तीफे से पहले और बाद में हुई घटनाएं एक संगठित राजनीतिक असहमति की ओर इशारा करती हैं। यह असहमति केवल कार्यशैली तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह विश्वास के क्षरण और संवैधानिक अपेक्षाओं के टकराव का परिणाम भी हो सकती है। यदि उपराष्ट्रपति को यह महसूस होता है कि उनके निर्णयों को लगातार सीमित किया जा रहा है, तो इस्तीफा देना एक सम्मानजनक विकल्प बन सकता है।


उपराष्ट्रपति की भूमिका पर सवाल

धनखड़ का इस्तीफा एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है: क्या उपराष्ट्रपति केवल एक औपचारिक चेहरा हैं, या उन्हें अपने विवेक से काम करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए? यदि किसी संवैधानिक पदाधिकारी को अपने दायित्वों के निर्वहन में बार-बार हस्तक्षेप का सामना करना पड़े, तो यह न केवल उस पद की गरिमा को ठेस पहुंचाता है, बल्कि लोकतंत्र के मूल स्वरूप पर भी प्रश्न खड़े करता है। यदि एक ऐसा नेता, जो स्पष्ट विचारों और साहसिक रुख के लिए जाना जाता है, वह दबाव महसूस करता है, तो इस्तीफा देना उचित हो सकता है।


धनखड़ का इस्तीफा: एक गंभीर बहस

अब यह स्पष्ट हो गया है कि जगदीप धनखड़ का इस्तीफा केवल स्वास्थ्य कारणों तक सीमित नहीं है। यह घटनाक्रम संवैधानिक पदों के भीतर अधिकार को लेकर एक गंभीर बहस को जन्म देता है। जब संसद में कहा जाता है कि “जो हम कहेंगे वही रिकॉर्ड होगा”, तो यह न केवल प्रक्रिया का अपमान है, बल्कि लोकतांत्रिक संरचना के भीतर शक्ति-संतुलन के सिद्धांत पर भी आघात है। धनखड़ ने अपनी संवैधानिक मर्यादा का पालन किया, लेकिन वह उन 'सीमाओं' से टकरा गए जो राजनीतिक व्यवस्था ने अनौपचारिक रूप से तय की थीं।