उद्धव और राज ठाकरे का बीएमसी चुनाव में गठबंधन: क्या मिलेगी नई ताकत?

महाराष्ट्र में नगर निकाय चुनावों में असफलता के बाद, उद्धव और राज ठाकरे ने बीएमसी चुनाव में एकजुट होने का निर्णय लिया है। दोनों भाई मिलकर चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं, जिसमें सीट बंटवारे पर चर्चा चल रही है। हालांकि, मुंबई में प्रांतीय और मराठी वोटरों की संख्या में असंतुलन है, जो चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकता है। जानें इस गठबंधन के पीछे की वजहें और संभावित परिणाम।
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उद्धव और राज ठाकरे का बीएमसी चुनाव में गठबंधन: क्या मिलेगी नई ताकत?

बीएमसी चुनाव में ठाकरे बंधुओं का संभावित गठबंधन

महाराष्ट्र में हाल ही में हुए नगर निकाय चुनावों में असफलता के बाद, बीजेपी और एनडीए को मिले प्रचंड बहुमत को देखते हुए, राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे ने एक बार फिर से एकजुट होने का विचार किया है। दोनों भाई पहले भी विधानसभा चुनाव के बाद एक मंच पर आए थे, लेकिन नगर निकाय चुनावों में अपेक्षित परिणाम नहीं मिले। अब, पार्टी के सूत्रों के अनुसार, दोनों मिलकर बीएमसी चुनाव में भाग लेने की योजना बना रहे हैं।


सीट बंटवारे पर चर्चा

सूत्रों के अनुसार, मुंबई की 227 सीटों पर समझौता लगभग तय हो चुका है। शिवसेना (यूबीटी) लगभग 150 सीटों पर और मनसे 60 से 70 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। हालांकि, कुछ क्षेत्रों जैसे शिवडी, विक्रोली, लोअर परेल और भांडुप में सीट बंटवारे को लेकर मतभेद हैं, जिन्हें उद्धव और राज के हस्तक्षेप से सुलझाया जाएगा। संजय राउत ने कहा है कि गठबंधन हो चुका है, केवल औपचारिक घोषणा बाकी है।


भाईचारे की वापसी

उद्धव ठाकरे के हाथ में शिवसेना (अविभाजित) की कमान जाने के बाद, नाराज राज ठाकरे ने 2006 में मनसे का गठन किया था। तब से मनसे ने कई चुनाव अकेले लड़े हैं। हाल ही में, उद्धव और राज ने फडणवीस सरकार द्वारा महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी भाषा को शामिल करने के विरोध में एक मंच साझा किया। इसके बाद, दोनों भाई नियमित रूप से मिलते रहे हैं और बीएमसी चुनाव में गठबंधन के लिए चर्चा कर रहे हैं।


स्थानीय वोटरों की भूमिका

राज ठाकरे का मानना है कि युवा वर्ग, जो गरीबों के लिए संघर्ष करता है, इस गठबंधन से एकजुट होगा। हालांकि, यह ध्यान रखना आवश्यक है कि मुंबई में 70% प्रांतीय वोटर हैं, जबकि केवल 30% मराठी वोटर हैं। ऐसे में प्रांतीय वोटरों को भगाने से 70% वोट दूसरी ओर जा सकते हैं। इस स्थिति में, यह देखना होगा कि क्या 30% मराठी वोटर एकजुट हो पाएंगे, क्योंकि एकनाथ शिंदे की शिवसेना और देवेंद्र फडणवीस की पार्टी भी स्थानीय मुद्दों पर सक्रिय हैं।