उत्तराखंड में सरकारी स्कूलों में गीता का पाठ अनिवार्य, शिक्षा में पारंपरिक ज्ञान का समावेश

उत्तराखंड सरकार ने सभी सरकारी स्कूलों में श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों का दैनिक पाठ अनिवार्य कर दिया है। इस पहल का उद्देश्य छात्रों में मानवीय मूल्यों का विकास करना और आधुनिक शिक्षा को पारंपरिक ज्ञान के साथ जोड़ना है। शिक्षकों को छात्रों को श्लोकों का अर्थ और वैज्ञानिक प्रासंगिकता समझाने के निर्देश दिए गए हैं। इसके अलावा, साप्ताहिक अभ्यास और चर्चाओं के माध्यम से छात्रों की समझ को गहरा करने का प्रयास किया जाएगा। यह कदम राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप है, जो पारंपरिक ज्ञान को समकालीन शिक्षा में शामिल करने की वकालत करती है।
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उत्तराखंड में सरकारी स्कूलों में गीता का पाठ अनिवार्य, शिक्षा में पारंपरिक ज्ञान का समावेश

गीता का दैनिक पाठ

उत्तराखंड सरकार ने सभी सरकारी स्कूलों में श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों का प्रतिदिन पाठ अनिवार्य कर दिया है। इस निर्णय के तहत, राज्य के छात्र सुबह की प्रार्थना के दौरान गीता के एक श्लोक से अपने दिन की शुरुआत करेंगे।


शिक्षा अधिकारियों के निर्देश

माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. मुकुल कुमार सती ने सभी मुख्य शिक्षा अधिकारियों को निर्देशित किया है कि छात्रों को प्रतिदिन पढ़े जाने वाले श्लोक का अर्थ और उसकी वैज्ञानिक प्रासंगिकता भी समझाई जाए। इस पहल का उद्देश्य आधुनिक शिक्षा को भारतीय पारंपरिक ज्ञान के साथ जोड़ना और छात्रों में मानवीय मूल्यों का विकास करना है। अधिकारियों का मानना है कि यह कदम छात्रों के बौद्धिक, भावनात्मक और नैतिक विकास को बढ़ावा देगा।


साप्ताहिक अभ्यास और चर्चाएँ

निर्देशों के अनुसार, शिक्षकों को हर सप्ताह एक श्लोक का चयन करना होगा, जिसे स्कूल के नोटिस बोर्ड पर प्रदर्शित किया जाएगा। छात्रों को नियमित रूप से उसका पाठ करना होगा और सप्ताह के अंत में उस श्लोक पर कक्षा में चर्चा की जाएगी, जिससे उनकी समझ और जुड़ाव को बढ़ावा मिलेगा।


चरित्र निर्माण और वैज्ञानिक दृष्टिकोण

शिक्षकों को गीता की दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक शिक्षाओं की व्याख्या करने का भी निर्देश दिया गया है, ताकि छात्र चरित्र विकास, भावनात्मक संतुलन, नेतृत्व कौशल और तर्कसंगत निर्णय लेने में सक्षम हो सकें। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि गीता के श्लोक केवल पढ़ने तक सीमित न रहें, बल्कि छात्रों के दैनिक व्यवहार को भी प्रभावित करें।


राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का पालन

यह पहल राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के अनुरूप है, जो पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों को समकालीन शिक्षा में शामिल करने की वकालत करती है। आदेश में कहा गया है कि गीता की शिक्षाएँ मनोविज्ञान, तर्कशास्त्र, व्यवहार विज्ञान और नैतिक दर्शन पर आधारित हैं, और इन्हें धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण से पढ़ाया जाना चाहिए।


पाठ्यक्रम में सांस्कृतिक एकीकरण

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पहले राज्य के पाठ्यक्रम में भगवद् गीता और रामायण की शिक्षाओं को शामिल करने का आह्वान किया था। नए शैक्षणिक सत्र में इन परिवर्तनों को दर्शाने वाली पाठ्यपुस्तकें शुरू होने की उम्मीद है।


शैक्षिक संस्थाओं का समर्थन

इस कदम को शैक्षिक समुदाय से व्यापक समर्थन मिला है। उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष मुफ़्ती शमून कासमी ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि राम और कृष्ण हमारे पूर्वज हैं और हर भारतीय के लिए उनके बारे में जानना आवश्यक है। उन्होंने मदरसों में संस्कृत भाषा को शामिल करने के लिए मदरसा बोर्ड और संस्कृत विभाग के बीच सहयोग की योजना की भी घोषणा की।