उत्तराखंड में आदि कैलाश मंदिर के लिए इनरलाइन परमिट पर रोक

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में भूस्खलन की आशंका के कारण प्रशासन ने आदि कैलाश मंदिर के लिए इनरलाइन परमिट जारी करने पर रोक लगा दी है। जिलाधिकारी विनोद गोस्वामी ने बताया कि श्रद्धालुओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया है। इस वर्ष 30 मई से शुरू हुई यात्रा में अब तक 23,532 श्रद्धालु शामिल हो चुके हैं। मंदिर में हाल ही में त्रिशूल, शिवलिंग और नंदी की प्रतिमा स्थापित की गई है, जिससे इस धार्मिक स्थल का आकर्षण बढ़ा है।
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उत्तराखंड में आदि कैलाश मंदिर के लिए इनरलाइन परमिट पर रोक

भूस्खलन के खतरे के चलते प्रशासन ने उठाया कदम

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में धारचूला-लिपुलेख मार्ग पर मानसून के दौरान भूस्खलन की संभावनाओं को देखते हुए प्रशासन ने जोलिंगकोंग में स्थित आदि कैलाश मंदिर के लिए आवश्यक ‘इनरलाइन परमिट’ जारी करने पर रोक लगा दी है। यह जानकारी जिला प्रशासन ने साझा की।


पिथौरागढ़ के जिलाधिकारी विनोद गोस्वामी ने बुधवार को बताया, ‘‘यात्रा के गुंजी शिविर तक पहुंचने वाली सड़क भूस्खलन के कारण अक्सर बंद हो जाती है। इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए मंगलवार से ‘इनरलाइन परमिट’ जारी करने का कार्य रोक दिया गया है।’’


उन्होंने कहा कि श्रद्धालुओं की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए यह निर्णय लिया गया है। गोस्वामी ने यह भी बताया कि मानसून समाप्त होने के बाद, 15 सितंबर से ‘परमिट’ जारी करने का कार्य पुनः प्रारंभ किया जाएगा।


धारचूला के उपजिलाधिकारी जीतेंद्र वर्मा ने जानकारी दी कि इस वर्ष 30 मई को आदि कैलाश यात्रा की शुरुआत के बाद से देशभर से 23,532 श्रद्धालु तीर्थयात्रा कर चुके हैं।


इस बीच, आदि कैलाश मंदिर में 40 फीट ऊंचा त्रिशूल, 1200 किलो वजनी शिवलिंग और नंदी की एक प्रतिमा स्थापित की गई है।


आदि कैलाश मंदिर के मुख्य पुजारी गोपाल सिह कुटियाल ने बताया कि त्रिशूल, शिवलिंग और नंदी महाराज की प्रतिमा की स्थापना आदि कैलाश विकास समिति द्वारा की गई है।


कुटियाल ने कहा, ‘‘विकास समिति के अधिकारियों के नेतृत्व में कुटी गांव के ग्रामीणों ने हर-हर महादेव के जयकारों के बीच इस त्रिशूल, शिवलिंग और नंदी की प्रतिमा को मंदिर परिसर में स्थापित किया। इसके बाद रंग समुदाय के रीति-रिवाजों के अनुसार वहां पूजा अर्चना की गई।’’


उन्होंने बताया कि इन तीनों पवित्र वस्तुओं की स्थापना में 12 कुमांउ रेजीमेंट ने भी सहयोग किया। कुटियाल ने कहा कि इस स्थापना से भगवान शिव के इस प्राचीन धार्मिक स्थल का आकर्षण और बढ़ गया है।