उत्तराखंड चारधाम यात्रा: पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करने की आवश्यकता
चारधाम यात्रा की बढ़ती संख्या और पर्यावरणीय चिंताएँ
देहरादून: उत्तराखंड में चारधाम यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है। इस वृद्धि के कारण हिमालय की पारिस्थितिकी और पर्यावरण पर गंभीर खतरे मंडरा रहे हैं। यह जानकारी जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान, अल्मोड़ा और उत्तराखंड औद्योगिक एवं वानिकी विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक अध्ययन में सामने आई है। हाल ही में इस अध्ययन की रिपोर्ट नेचर पोर्टफोलियो के जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुई है। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि यदि चारधाम यात्रा के लिए कोई वैज्ञानिक योजना नहीं बनाई गई, तो भविष्य में पर्यावरण को गंभीर नुकसान हो सकता है।
इस अध्ययन की रिपोर्ट का शीर्षक "Carrying capacity and strategic planning for sustainable tourism practices in the Char Dham from the Western Himalaya, India" है। इसमें चारधाम यात्रा के लिए ईको-टूरिज्म और सस्टेनेबल पर्यटन के संदर्भ में कैरिंग कैपेसिटी, पर्यावरणीय चुनौतियों और उनके समाधान का विश्लेषण किया गया है। वर्ष 2000 में चारधाम में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 10 लाख थी, जो 2023 में बढ़कर 50 लाख से अधिक हो गई है। इस वृद्धि के कारण पर्यावरणीय समस्याएँ भी बढ़ रही हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि चारधाम में श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन गतिविधियों को प्रभावित कर रही है। इसके परिणामस्वरूप भूस्खलन, हिमस्खलन और चट्टानों के गिरने जैसी घटनाएँ बढ़ रही हैं। इसके अलावा, ग्लेशियरों के पीछे हटने से ट्रेल्स और पर्वतारोहण मार्गों में भी बदलाव आ रहा है। चारधाम यात्रा के कारण बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के समीप स्थित ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे तापमान में भी वृद्धि हो रही है।
रिपोर्ट के अनुसार, चारधाम की विभिन्न स्थलों की वहन क्षमता निर्धारित की गई है: बदरीनाथ धाम की 15778, केदारनाथ धाम की 13111, गंगोत्री धाम की 8178 और यमुनोत्री धाम की 6160 श्रद्धालु प्रतिदिन होनी चाहिए। चारधाम यात्रा उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देती है और लगभग 50,000 लोगों को रोजगार भी प्रदान करती है। लेकिन, श्रद्धालुओं की संख्या में तेजी से हो रही वृद्धि से पर्यावरण और प्रबंधन की चिंताएँ बढ़ रही हैं। केदारनाथ यात्रा के दौरान प्रतिदिन डेढ़ से 2 टन कचरा उत्पन्न होता है, जिसका उचित निस्तारण आवश्यक है।
वैज्ञानिकों का सुझाव है कि चारधाम के आसपास पर्यटन क्षेत्र का विकास किया जाना चाहिए, ताकि यात्रियों को अन्य स्थलों की ओर भी आकर्षित किया जा सके। अध्ययन में 23 वर्षों के आंकड़ों के आधार पर कैरिंग कैपेसिटी का निर्धारण किया गया है, जिसे अपनाने की आवश्यकता है। बढ़ती पर्यटकों की संख्या से प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है, जिससे जल संकट और प्रदूषण की समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान और उत्तराखंड औद्योगिक एवं वानिकी विश्वविद्यालय ने इस अध्ययन में कई समाधान और सिफारिशें भी की हैं। इनमें सामुदायिक भागीदारी के तहत होम-स्टे, स्थानीय भोजन, ग्रामीण हस्तशिल्प और एडवेंचर टूरिज्म को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इसके साथ ही, कचरे के प्रबंधन और ग्रीन ट्रांसपोर्टेशन को प्रोत्साहित करने की भी सिफारिश की गई है। सबसे महत्वपूर्ण बात, धामों के लिए निर्धारित कैरिंग कैपेसिटी से अधिक पर्यटकों की आवाजाही पर नियंत्रण लगाने की आवश्यकता है।
