उत्तराखंड उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय: कर्मचारी की बर्खास्तगी को किया रद्द

न्यायालय का आदेश
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि किसी कर्मचारी को विभागीय गलती का खामियाजा नहीं भुगतना चाहिए। अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसी त्रुटियों के आधार पर किसी कर्मचारी को कष्ट नहीं दिया जा सकता।
सरिता गुप्ता का मामला
यह निर्णय उत्तराखंड जल निगम की अधिशासी अभियंता सरिता गुप्ता के मामले में आया, जिन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। अदालत ने उनकी बर्खास्तगी को 'गैरकानूनी' करार देते हुए कहा कि यदि नियुक्ति प्रक्रिया में कोई गलती हुई है, तो उसका दोष निर्दोष कर्मचारी पर नहीं डाला जा सकता।
सेवा में बहाली का आदेश
न्यायालय ने आदेश दिया कि सरिता गुप्ता को सभी लाभों के साथ सेवा में बहाल किया जाए। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की एकल पीठ ने की। सरिता गुप्ता का चयन 2007 में सामान्य (महिला) श्रेणी के अंतर्गत आरक्षित पद के लिए हुआ था।
आरक्षण का विवाद
विज्ञापन में यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि क्षैतिज आरक्षण केवल उत्तराखंड की मूल निवासी महिलाओं पर लागू होगा। 2018 में उन्हें अधिशासी अभियंता के पद पर पदोन्नति भी दी गई थी।
बर्खास्तगी का कारण
हालांकि, 2021 में उन्हें एक नोटिस जारी किया गया, जिसमें कहा गया कि चूंकि वह मूल रूप से उत्तराखंड की निवासी नहीं हैं, इसलिए उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए था। विभागीय जांच में यह पाया गया कि गुप्ता ने न तो कोई झूठे दस्तावेज जमा किए थे और न ही किसी प्रकार की धोखाधड़ी की थी।
न्यायालय की टिप्पणी
न्यायालय ने पाया कि उनकी नियुक्ति से लेकर पदोन्नति तक, विभाग को उनके स्थायी निवास की स्थिति की जानकारी थी। इसके बावजूद, उन्हें नियुक्ति पत्र जारी किया गया और पदोन्नति दी गई। अदालत ने कहा कि लगभग दो दशक बाद उन्हें सेवा से हटाना 'राज्य द्वारा अपनी ही गलती का फायदा उठाने' जैसा है, जो अन्यायपूर्ण और अनुचित है।