उत्तर प्रदेश में सपा की मस्जिद बैठक पर भाजपा का तीखा हमला

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की मस्जिद में बैठक ने राजनीतिक हलचल मचा दी है। भाजपा ने इस पर तीखा हमला करते हुए इसे धार्मिक स्थलों का राजनीतिक उपयोग बताया है। डिंपल यादव ने आरोपों को खारिज किया, जबकि अखिलेश यादव ने भाजपा पर धर्म को हथियार बनाने का आरोप लगाया। इस घटना को मुस्लिम समुदाय के साथ सपा के जुड़ाव के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। जानें इस विवाद के पीछे की राजनीति और मुस्लिम समाज की मिली-जुली प्रतिक्रियाएं।
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उत्तर प्रदेश में सपा की मस्जिद बैठक पर भाजपा का तीखा हमला

सपा प्रमुख की मस्जिद में बैठक पर विवाद

उत्तर प्रदेश की राजनीतिक स्थिति उस समय गरमा गई जब समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल यादव की एक मस्जिद के अंदर बैठक करते हुए तस्वीरें सामने आईं। यह बैठक दिल्ली के संसद मार्ग पर स्थित एक मस्जिद में आयोजित की गई, जिसमें कई अन्य सपा नेता भी शामिल थे। इस घटना को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने सपा पर तीखा हमला करते हुए इसे "धार्मिक स्थलों का राजनीतिक उपयोग" बताया है।


भाजपा की प्रतिक्रिया

मस्जिद के अंदर हुई इस बैठक की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद भाजपा और इसके अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रमुख जमाल सिद्दीकी ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने डिंपल यादव पर मस्जिद के आदर्शों का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने न तो सिर ढका और न ही उचित पोशाक पहनी, जो कि इस्लामिक पूजा स्थल की गरिमा के खिलाफ है।


पूर्व केंद्रीय मंत्री की टिप्पणी

भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने भी इस घटना को इस्लामी भावनाओं को आहत करने वाला बताया और सपा पर धार्मिक स्थलों को "वोट बैंक" के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाया।


डिंपल यादव का जवाब

डिंपल यादव ने भाजपा के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि वहां कोई "बैठक" नहीं हो रही थी और भाजपा जनता को गुमराह करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा गंभीर मुद्दों पर चर्चा नहीं करना चाहती। वहीं, अखिलेश यादव ने भाजपा पर "धर्म को हथियार" बनाने का आरोप लगाया और कहा कि सपा हर धर्म का सम्मान करती है।


सपा का मुस्लिम समुदाय से जुड़ाव

समाजवादी पार्टी पर लंबे समय से मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगता रहा है। मुलायम सिंह यादव के समय से लेकर अब तक, सपा को मुस्लिम समुदाय का मजबूत समर्थन मिला है, जिसे उसकी राजनीतिक रीढ़ माना जाता है। कुछ विश्लेषक इस बैठक को आगामी चुनावों से पहले मुस्लिम समुदाय को फिर से संगठित करने की रणनीति मानते हैं। हालांकि, पार्टी इसे 'सांप्रदायिक सौहार्द' का उदाहरण बता रही है।


राजनीतिक बैठक का संवेदनशील मुद्दा

मस्जिद में बैठक को धार्मिक सम्मान या अपमान, संवाद या साजिश, या राजनीतिक रणनीति के रूप में देखा जा सकता है। यह घटना उत्तर प्रदेश की राजनीति में अल्पसंख्यक राजनीति के पुनरुत्थान और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के संकेत देती है। अखिलेश यादव की यह कोशिश मुस्लिम समुदाय के साथ जुड़ाव को प्रदर्शित करती है, लेकिन इसका वास्तविक स्वरूप क्या होगा, यह भविष्य में ही स्पष्ट होगा।


मुस्लिम समाज की मिली-जुली प्रतिक्रिया

मस्जिद या किसी धार्मिक स्थल में राजनीतिक बैठक का आयोजन भारतीय राजनीति में एक संवेदनशील मुद्दा है। संविधान धर्म और राजनीति के मिश्रण से बचने की बात करता है। भारत के चुनावी इतिहास में धार्मिक स्थलों का राजनीतिक इस्तेमाल हमेशा विवादास्पद रहा है। मुस्लिम समाज में इस बैठक को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं। कुछ ने इस कदम की सराहना की है, जबकि अन्य ने कहा कि मुस्लिम समुदाय को केवल 'वोट बैंक' समझने की राजनीति अब समाप्त होनी चाहिए।