उच्चतम न्यायालय ने भीड़ हिंसा के पीड़ितों के मुआवजे की याचिका खारिज की

उच्चतम न्यायालय ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उत्तर प्रदेश में भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मारे गए व्यक्तियों के परिवारों को मुआवजा देने की मांग की गई थी। न्यायालय ने कहा कि इस मामले में पहले राज्य सरकार से संपर्क करना आवश्यक है। जानें इस महत्वपूर्ण निर्णय के पीछे की वजहें और उच्च न्यायालय के निर्देशों के बारे में।
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उच्चतम न्यायालय ने भीड़ हिंसा के पीड़ितों के मुआवजे की याचिका खारिज की

जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर उच्चतम न्यायालय का निर्णय

सोमवार को उच्चतम न्यायालय ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा दायर उस याचिका को अस्वीकार कर दिया, जिसमें उत्तर प्रदेश में भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मारे गए व्यक्तियों के परिवारों को मुआवजा देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।


न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता को राज्य सरकार से संपर्क करने के लिए कहा गया था।


याचिका में 'तहसीन पूनावाला मामले' में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों के कार्यान्वयन के लिए व्यापक दिशा-निर्देश देने की मांग की गई थी।


इस याचिका में उत्तर प्रदेश सरकार की निवारक, उपचारात्मक और दंडात्मक उपायों को लागू करने में कथित विफलता को उजागर किया गया था।


उच्च न्यायालय ने 15 जुलाई को जमीयत उलेमा-ए-हिंद की जनहित याचिका को निस्तारित करते हुए कहा था कि हर एक भीड़ हिंसा की घटना अलग होती है और इस पर जनहित याचिका में विचार नहीं किया जा सकता।


हालांकि, उच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया था कि प्रभावित पक्ष उच्चतम न्यायालय के निर्देशों को लागू कराने के लिए पहले उचित सरकारी प्राधिकरण से संपर्क करने के लिए स्वतंत्र हैं।