उच्चतम न्यायालय ने आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में महत्वपूर्ण निर्णय दिया

उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि पड़ोसियों के बीच बहस या हाथापाई आत्महत्या के लिए उकसाने के दायरे में नहीं आती। न्यायालय ने कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा एक महिला को दी गई सजा को रद्द कर दिया, यह बताते हुए कि अभियुक्त ने आत्महत्या के लिए पीड़ित को उकसाने का कोई प्रयास नहीं किया। यह मामला 2008 में शुरू हुए एक विवाद से संबंधित है, जिसमें पीड़िता ने उत्पीड़न के कारण आत्महत्या की। इस निर्णय ने कानूनी दृष्टिकोण से कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं।
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उच्चतम न्यायालय ने आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में महत्वपूर्ण निर्णय दिया

उच्चतम न्यायालय का निर्णय

उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को स्पष्ट किया कि पड़ोसियों के बीच होने वाली बहस या हाथापाई भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने के दायरे में नहीं आती।


न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने एक महिला द्वारा अपनी पड़ोसी को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा दी गई तीन साल की सजा को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की।


अदालत ने कहा कि आईपीसी की धारा 306 को लागू करने के लिए यह आवश्यक है कि अभियुक्त ने पीड़ित को आत्महत्या के लिए उकसाया हो या उसे प्रेरित किया हो।


पीठ ने कहा, 'हालांकि पड़ोसियों के बीच प्रेम होना एक आदर्श स्थिति है, लेकिन झगड़े समाज में सामान्य हैं। यह देखना होगा कि क्या इस मामले में आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला बनता है।'


अदालत ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता और पीड़िता के परिवारों के बीच तनावपूर्ण संबंधों के बावजूद, अपीलकर्ता की ओर से आत्महत्या के लिए किसी प्रकार की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष उकसावे की मंशा नहीं थी।


पीठ ने कहा, 'ऐसे झगड़े रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा हैं, और तथ्यों के आधार पर हम यह नहीं कह सकते कि अपीलकर्ता ने ऐसा कोई कार्य किया जिससे पीड़िता के पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प न हो।'


यह निर्णय कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिसमें आरोपी महिला को आईपीसी की धारा 306 के तहत दोषी ठहराया गया था, लेकिन अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(2)(वी) के आरोप से बरी कर दिया गया था।


मामले के अनुसार, 2008 में आरोपी महिला और पीड़िता के बीच एक मामूली विवाद शुरू हुआ था, जो लगभग छह महीने तक चला। आरोप है कि पीड़िता, जो एक निजी शिक्षिका थी, ने आरोपी द्वारा किए जा रहे उत्पीड़न के कारण आत्महत्या कर ली।