ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिका का हमला: क्या हुआ नुकसान?

इजरायल और अमेरिका की सैन्य कार्रवाई
नई दिल्ली। 13 जून को इजरायल ने ईरान के परमाणु स्थलों पर मिसाइलों और ड्रोन से हमले किए, जिसे ‘ऑपरेशन राइजिंग लायन’ का नाम दिया गया। इस सैन्य कार्रवाई पर अमेरिका की भी नजर थी, क्योंकि दोनों देशों का लक्ष्य ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकना है।
अमेरिका का बमबारी अभियान
इजरायल की सेना ने ईरान के विभिन्न शहरों पर बमबारी की, लेकिन ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों पर हमला करना आसान नहीं था। ये ठिकाने थे: नतांज, इस्फहान और फोर्डो।
जबकि इजरायल और ईरान के बीच संघर्ष जारी था, अमेरिका ने 22 जून को इन तीनों ठिकानों पर बमबारी की। अमेरिका ने B-2 स्पिरिट स्टील्थ बमवर्षक विमानों का उपयोग करते हुए GBU-57 MOP बंकर-भेदी बमों से हमले किए।
हमले का प्रभाव
इस हमले से ईरान के परमाणु संयंत्रों को गंभीर नुकसान हुआ है। अमेरिका ने दावा किया है कि इस हमले ने ईरान के परमाणु हथियार बनाने के सपने को समाप्त कर दिया है। हालांकि, ईरान ने कहा कि हमलों का उनके परमाणु कार्यक्रम पर कोई खास असर नहीं पड़ा।
सैटेलाइट तस्वीरों का खुलासा
कुछ थ्योरी यह भी बताती हैं कि ईरान ने हमले से पहले ही महत्वपूर्ण सामग्री को अन्य स्थानों पर स्थानांतरित कर दिया था। लेकिन सैटेलाइट तस्वीरें ट्रंप के दावों का समर्थन करती हैं, जिसमें तीनों ठिकानों को भारी नुकसान दिखाया गया है।
फोर्डो संयंत्र को पूरी तरह से क्षतिग्रस्त दिखाया गया है, जो पहाड़ के नीचे और जमीन से 300 फीट गहराई में स्थित था। यह संयंत्र विशेष रूप से हवाई हमलों से बचने के लिए डिजाइन किया गया था।
इस्फहान संयंत्र की स्थिति
इस्फहान संयंत्र में येलोकेक को यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड में परिवर्तित किया जा रहा था, और यहां रिएक्टर ईंधन का निर्माण किया जा रहा था।
ईरान की प्रतिक्रिया
ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माइल बाघेई ने पुष्टि की कि अमेरिकी हमलों से देश की परमाणु सुविधाओं को नुकसान पहुंचा है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि संयंत्र पूरी तरह से नष्ट नहीं हुए हैं।