ईरान-इजराइल संघर्ष में संभावित संघर्ष विराम पर संदेह

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ईरान और इजराइल के बीच संघर्ष विराम की घोषणा पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का संदेह है। इजराइल ने इस पर पुष्टि नहीं की है, और हाल में हुए विस्फोटों ने स्थिति को और जटिल बना दिया है। भारत के लिए, आयातित कच्चे तेल की आपूर्ति बाधित नहीं होगी, लेकिन तेल की कीमतों में संभावित वृद्धि चिंता का विषय है। विशेषज्ञों का मानना है कि वैश्विक तेल की कीमतों में वृद्धि भारत के आयात बिल को प्रभावित कर सकती है।
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ईरान-इजराइल संघर्ष में संभावित संघर्ष विराम पर संदेह

संघर्ष विराम की घोषणा पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया


अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ईरान और इजराइल के बीच संघर्ष विराम की घोषणा पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का संदेह स्पष्ट है। इस घोषणा के बाद इजराइल ने इस संघर्ष विराम की पुष्टि नहीं की है, और ट्रंप की घोषणा के कुछ घंटों बाद तेहरान में शक्तिशाली विस्फोटों की आवाज सुनाई दी। हालांकि, वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं पर इस संघर्ष के प्रभाव को देखते हुए, अंतरराष्ट्रीय समुदाय आशा कर रहा है कि ट्रंप इस बार झूठ नहीं बोल रहे हैं और 12 दिन लंबे संघर्ष का अंत होगा।


इस संघर्ष का मुख्य नुकसान कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के रूप में सामने आया है, जो इसकी निरंतर आपूर्ति के खतरे के कारण हुआ है। इससे ऊर्जा और ईंधन की लागत में वृद्धि हुई है, जिससे एशिया में उपभोक्ताओं पर भारी बोझ पड़ा है। एशियाई देशों के लिए, जो खाड़ी देशों से तेल पर निर्भर हैं, इस क्षेत्र में अस्थिरता भारी दबाव बना रही है। ईरान द्वारा होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की धमकी ने कच्चे तेल की कीमतों में और वृद्धि की चिंता को बढ़ा दिया है।


भारत की स्थिति और संभावित प्रभाव

भारत के लिए एकमात्र सकारात्मक पहलू यह है कि आयातित कच्चे तेल की आपूर्ति बाधित नहीं होगी। केंद्रीय मंत्री सरबानंद सोनोवाल ने स्वीकार किया है कि तेल की कीमतों में वृद्धि हो सकती है। होर्मुज जलडमरूमध्य अरब सागर से जुड़े दो जल निकाय हैं: फारसी खाड़ी और ओमान की खाड़ी, जिन पर ईरान, सऊदी अरब और यूएई जैसे प्रमुख तेल उत्पादक देशों की निर्भरता है।


हालांकि, भारत अपने अधिकांश कच्चे तेल का आयात रूस से करता है, और पूर्वी आर्थिक गलियारे के संचालन के कारण वहां से आपूर्ति जारी रहेगी। इसके अलावा, अमेरिका से कच्चे तेल का आयात भी प्रभावित नहीं होगा क्योंकि वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध हैं। सऊदी अरब और यूएई से कच्चे तेल के लिए भी वैकल्पिक मार्ग मौजूद हैं, हालाँकि आपूर्ति भारतीय बंदरगाहों तक पहुँचने में थोड़ा अधिक समय ले सकती है।


एक चिंता का विषय यह है कि मंत्री ने तेल की कीमतों में थोड़ी वृद्धि की संभावना को स्वीकार किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि वैश्विक तेल की कीमतों में 25 प्रतिशत की वृद्धि भारत के तेल आयात बिल को लगभग 30-40 अरब डॉलर वार्षिक बढ़ा देगी, जिससे चालू खाता घाटा, रुपये और घरेलू महंगाई पर भारी दबाव पड़ेगा। इस प्रकार, अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ-साथ भारत भी यह उम्मीद कर रहा है कि ट्रंप इस बार सही साबित होंगे और ईरान-इजराइल संघर्ष से होने वाले दुष्प्रभाव समाप्त होंगे!