इस्लाम में आत्महत्या: धार्मिक दृष्टिकोण और सजा
इस्लाम में आत्महत्या का महत्व
इस्लाम में आत्महत्या
इस्लाम में आत्महत्या की सजा: आत्महत्या को सभी धर्मों में एक गंभीर पाप माना गया है, और इसे नकारा गया है। कई बार लोग मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण इस कदम को उठाते हैं। आत्महत्या के मामलों में वृद्धि हो रही है, जिससे यह सवाल उठता है कि इस्लाम में इसके बारे में क्या कहा गया है। इस लेख में हम इस्लाम के दृष्टिकोण को समझेंगे।
क्या इस्लाम में आत्महत्या करना हराम है?
इस्लामिक विद्वान मुफ्ती सलाउद्दीन कासमी के अनुसार, आत्महत्या इस्लाम में एक बड़ा गुनाह है। चाहे व्यक्ति कितनी भी कठिनाइयों का सामना कर रहा हो, उसे आत्महत्या की अनुमति नहीं है।
कुरान की सूरह अन निसा की आयत 29 में अल्लाह ने कहा है, “ऐ ईमान वालो! आपस में एक-दूसरे के माल गलत तरीके से न खाओ – यह और बात है कि तुम्हारी आपस में रज़ामन्दी से कोई सौदा हो और अपना गला घोंट कर अपनी जान न दो (क्योंकि) खुदा तुम्हारे हाल पर मेहरबान है।”
आत्महत्या की सजा क्या है?
कुरान में आत्महत्या को सख्ती से मना किया गया है। यह केवल एक पाप नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी गलती है जिसका परिणाम व्यक्ति को उसके जीवन के बाद भी भुगतना पड़ सकता है।
पैगंबर मुहम्मद ने कहा, “जो इंसान खुद को मारता है, उसे मरने के बाद उसी तरह की सजा मिलेगी।”
यदि किसी ने जहर लिया, तो उसकी जहर की बोतल उसके हाथ में रहेगी और वह नरक में बार-बार वही जहर पीता रहेगा।
क्या आत्महत्या करने वाले का जनाजा पढ़ा जाता है?
मुफ्ती सलाउद्दीन कासमी के अनुसार, पैगंबर मुहम्मद ने आत्महत्या करने वाले के लिए जनाजा पढ़ने से मना किया था। हालांकि, कई इस्लामी विद्वान मानते हैं कि आत्महत्या करने वाले का जनाजा पढ़ा जा सकता है।
क्या आत्महत्या कुफ्र है?
इस्लाम में आत्महत्या को कुफ्र नहीं माना जाता। इसका मतलब यह नहीं है कि वह व्यक्ति मुस्लिम नहीं रहा। आत्महत्या एक बड़ा गुनाह है, और इसके लिए अल्लाह की मर्जी पर निर्णय होगा।
आत्महत्या करने वालों की आत्मा का क्या होता है?
कुरान में आत्माओं को इल्लियिन और सिज्जीन में रखा जाता है। आत्महत्या करने वालों की आत्मा कयामत तक सिज्जीन में कैद रहती है।
इस्लाम में आत्महत्या को एक गंभीर गुनाह माना गया है, और इसकी सजा नरक है। जीवन अल्लाह द्वारा दिया गया है, और इसे समाप्त करने का अधिकार केवल अल्लाह को है।
