इलाहाबाद उच्च न्यायालय में आरक्षण पर महत्वपूर्ण फैसला 4 सितंबर को

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ 4 सितंबर को आरक्षण से संबंधित एक महत्वपूर्ण मामले पर निर्णय सुनाएगी। राज्य सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की जाएगी, जिसमें सरकारी मेडिकल कॉलेजों में आरक्षित वर्ग के लिए 79 प्रतिशत से अधिक सीटों के आरक्षण का मुद्दा शामिल है। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और इसके संभावित प्रभावों के बारे में।
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इलाहाबाद उच्च न्यायालय में आरक्षण पर महत्वपूर्ण फैसला 4 सितंबर को

इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने आंबेडकर नगर, कन्नौज, जालौन और सहारनपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में आरक्षित वर्ग के लिए 79 प्रतिशत से अधिक सीटों के आरक्षण संबंधी राज्य सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर 4 सितंबर को निर्णय सुनाने का निर्णय लिया है।


लखनऊ पीठ ने मंगलवार को राज्य सरकार द्वारा दायर विशेष अपील पर अपना निर्णय सुरक्षित रखा, जिसमें एकल न्यायाधीश के निर्णय को चुनौती दी गई थी।


न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की पीठ ने चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा दायर विशेष अपील पर यह आदेश जारी किया। राज्य सरकार ने इस मामले में बहस के लिए वरिष्ठ अधिवक्ताओं जे एन माथुर और संजय भसीन के साथ-साथ विशेष निजी वकीलों की एक टीम को नियुक्त किया था, जबकि लखनऊ पीठ में दस अतिरिक्त महाधिवक्ता भी उपस्थित थे ताकि आरक्षण को बहाल किया जा सके।


वकीलों के समूह ने तर्क दिया कि उच्चतम न्यायालय ने इंदिरा साहनी मामले में प्रवेश में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण कोटा की अनुमति दी थी। इससे पहले, न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की पीठ ने राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) के अभ्यर्थी सबरा अहमद द्वारा दायर याचिका पर पिछले बृहस्पतिवार को निर्णय दिया था।


नीट-2025 में 523 अंक और अखिल भारतीय रैंक 29,061 प्राप्त करने वाली याचिकाकर्ता ने यह तर्क किया कि 2010 और 2015 के बीच जारी कई सरकारी आदेशों ने आरक्षण की सीमा को अवैध रूप से बढ़ा दिया।


याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि इन कॉलेजों में राज्य सरकार के कोटे में 85-85 सीटें हैं, लेकिन अनारक्षित वर्ग को केवल सात सीटें आवंटित की जा रही हैं। इसे उस दीर्घकालिक सिद्धांत का स्पष्ट उल्लंघन बताया गया है कि आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। राज्य सरकार ने एकल पीठ के निर्णय को दो न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष विशेष अपील में चुनौती दी है।