इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 38 साल बाद हत्या के मामले में बुजुर्ग को बरी किया
इलाहाबाद उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक हत्या के मामले में 38 साल पहले आजीवन कारावास की सजा पाए 68 वर्षीय बुजुर्ग को बरी कर दिया है। न्यायमूर्ति जेजे मुनीर और न्यायमूर्ति संजीव कुमार की खंडपीठ ने यह निर्णय सुनाते हुए कहा कि बुलंदशहर के सत्र न्यायाधीश द्वारा दिए गए फैसले में अपीलकर्ता की संलिप्तता पर गंभीर संदेह है। अभियोजन पक्ष अपने आरोपों को उचित संदेह से परे साबित करने में असफल रहा है।
पीठ ने ओंकार नामक व्यक्ति द्वारा दायर आपराधिक अपील को स्वीकार करते हुए 2 दिसंबर, 1987 के सत्र न्यायालय के आदेश को खारिज कर दिया। निचली अदालत ने ओंकार को आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और धारा 34 (सामान्य मंशा) के तहत सजा सुनाई थी।
मामले के तथ्यों के अनुसार, रामजी लाल ने 11 फरवरी, 1985 को बुलंदशहर के अहमद गढ़ पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें उसने आरोप लगाया था कि तीन व्यक्तियों- वीरेंद्र, ओंकार और अजब सिंह ने उसके घर में घुसकर उसके भतीजे राजेंद्र की हत्या की। सुनवाई के दौरान अपीलकर्ता वीरेंद्र और अजब सिंह की मृत्यु हो गई, लेकिन मौजूदा अपील की सुनवाई जीवित बचे एकमात्र अपीलकर्ता ओंकार सिंह के अनुरोध पर की गई।
अदालत ने कहा, 'इस अपराध में अपीलकर्ता की संलिप्तता अत्यधिक संदेहास्पद प्रतीत होती है। अभियोजन पक्ष अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करने में असफल रहा है और यह साबित नहीं कर सका कि अपीलकर्ता ओंकार अन्य लोगों के साथ मिलकर रामजी लाल के घर में घुसा और राजेंद्र की हत्या की।'
अदालत ने आगे कहा, 'इसलिए, निचली अदालत ने साक्ष्य का सही आकलन नहीं किया और अवैध रूप से अपीलकर्ता ओंकार को दोषी ठहराया।' एक दिसंबर को दिए गए निर्णय में अदालत ने अपीलकर्ता को बरी करते हुए कहा कि ओंकार सिंह जमानत पर हैं और उन्हें आत्मसमर्पण करने की आवश्यकता नहीं है।
