इलाहाबाद उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय: मृत्युदंड और आजीवन कारावास के मामलों में अग्रिम जमानत की अनुमति

अग्रिम जमानत पर नया निर्णय
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि मृत्युदंड या आजीवन कारावास से संबंधित मामलों में अग्रिम जमानत देने पर अब कोई कानूनी रोक नहीं है।
अदालत ने बताया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (बीएनएसएस) की धारा 482 में सीआरपीसी की धारा 438 (6) के तहत कोई प्रतिबंध नहीं है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत दी जा सकती है।
न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह ने यह टिप्पणी तब की जब अब्दुल हमीद नामक व्यक्ति ने अग्रिम जमानत के लिए याचिका दायर की थी। हमीद को 2011 में हुई हत्या के मामले में सम्मन जारी किया गया था, लेकिन जांच के दौरान उसके खिलाफ कोई आरोप पत्र दाखिल नहीं किया गया।
पहली बार याचिकाकर्ता की अग्रिम जमानत को उच्च न्यायालय की एक पीठ ने फरवरी 2023 में सीआरपीसी की धारा 438(6) के तहत रोक के कारण खारिज कर दिया था। यह रोक उत्तर प्रदेश संशोधन अधिनियम, 2019 द्वारा लगाई गई थी।
एक जुलाई 2024 को बीएनएसएस लागू होने के बाद, याचिकाकर्ता ने नए कानून की धारा 482 के तहत फिर से अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया। हालांकि, सत्र न्यायालय ने मार्च 2025 में इसे खारिज कर दिया, जिसके बाद याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय का रुख किया।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क किया कि बीएनएसएस के लागू होने से सीआरपीसी की धारा 438(6) अब प्रभावी नहीं है और वर्तमान याचिका एक अलग कानूनी ढांचे के तहत दायर की गई है।
वहीं, राज्य सरकार के वकील ने कहा कि हत्या का मामला 2011 का है और आरोप पत्र सीआरपीसी के तहत पहले ही दाखिल किया गया था, जिसका संज्ञान बीएनएसएस के लागू होने से पहले लिया गया।
बृहस्पतिवार को अपने निर्णय में पीठ ने कहा कि 1 जुलाई 2024 के बाद दायर की गई याचिका पूरी तरह से बीएनएसएस के दायरे में आती है, और इसलिए आवेदक इसके लाभ का हकदार है।