इलाहाबाद उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय: नाबालिग के अपहरण का मामला रद्द

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि यदि एक नाबालिग अपनी इच्छा से कानूनी अभिभावक को छोड़ देता है, तो इसे अपहरण का मामला नहीं माना जाएगा। न्यायमूर्ति विक्रम डी. चौहान ने इस मामले में आरोपी हिमांशु दूबे के खिलाफ अपहरण के आरोप को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि केवल बातचीत के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि किसी नाबालिग को बहकाकर उसके कानूनी अभिभावक से अलग किया गया है। इस निर्णय ने नाबालिगों के अधिकारों और कानूनी प्रक्रियाओं पर महत्वपूर्ण प्रकाश डाला है।
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इलाहाबाद उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय: नाबालिग के अपहरण का मामला रद्द

नाबालिग के अपहरण के मामले में अदालत का निर्णय

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक मामले में स्पष्ट किया है कि यदि एक नाबालिग अपनी मर्जी से कानूनी अभिभावक को छोड़ देता है, तो इसे अपहरण का मामला नहीं माना जाएगा।


इस संदर्भ में न्यायमूर्ति विक्रम डी. चौहान ने एक व्यक्ति के खिलाफ अपहरण के आरोप को खारिज करते हुए कहा कि केवल बातचीत के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि किसी नाबालिग को बहकाकर उसके कानूनी अभिभावक से अलग किया गया है।


न्यायाधीश ने यह भी बताया कि जब कोई नाबालिग अपनी इच्छा से कानूनी अभिभावक को छोड़ता है, तो इस स्थिति में भारतीय दंड संहिता की धारा 361 (कानूनी अभिभावक से अपहरण) लागू नहीं होती।


अदालत ने 10 सितंबर को आरोपी हिमांशु दूबे द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए इस आपराधिक मामले में दाखिल आरोप पत्र और मुकदमे को रद्द कर दिया।


दिसंबर 2020 में दर्ज प्राथमिकी में शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने उसकी 16 वर्षीय भतीजी को बहला-फुसलाकर भगा लिया। जांच के दौरान, लड़की ने पुलिस और निचली अदालत में बयान दिया कि उसके परिजन उसे मारते-पीटते थे और उसे बिजली का झटका भी देते थे, जिसके कारण उसने घर छोड़ने का निर्णय लिया।


लड़की ने यह भी बताया कि वह मोबाइल फोन पर किसी से बातचीत करती थी, जिसके कारण उसके चाचा उसे पीटते थे। उसने दावा किया कि पुलिस थाने ले जाने से पहले वह दो दिन तक सिवान में रही।


हालांकि उसने अपने बयान में याचिकाकर्ता का नाम नहीं लिया, लेकिन उसकी मां ने याचिकाकर्ता के साथ अपनी बेटी के संबंधों के बारे में जानकारी दी। इसी आधार पर याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय में अपील की।


याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि कथित पीड़िता ने इस मामले में उसकी संलिप्तता का आरोप नहीं लगाया था, क्योंकि उसने यह स्वीकार नहीं किया कि वह याचिकाकर्ता के साथ भागी।