इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फिजियोथैरेपी डिग्री पर निर्णय

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फिजियोथैरेपी में डिग्री को एमबीबीएस के समकक्ष मानने का निर्णय राज्य सरकार पर छोड़ दिया है। न्यायमूर्ति अजित कुमार ने संध्या यादव की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह तय करना राज्य सरकार का कार्य है। इस मामले में, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने खाद्य सुरक्षा अधिकारी के पद के लिए आवेदन आमंत्रित किया था, लेकिन याचिकाकर्ता को साक्षात्कार में शामिल नहीं होने दिया गया। जानें इस महत्वपूर्ण निर्णय के पीछे की पूरी कहानी।
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इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फिजियोथैरेपी डिग्री पर निर्णय

उच्च न्यायालय का निर्णय

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यह अदालत अपने असाधारण न्याय क्षेत्र के तहत यह नहीं तय कर सकती कि फिजियोथैरेपी में डिग्री एमबीबीएस के समकक्ष है या नहीं। यह निर्णय राज्य सरकार का कार्य है।


न्यायमूर्ति अजित कुमार ने संध्या यादव की याचिका को खारिज करते हुए कहा, "फिजियोथैरेपी में डिग्री को एमबीबीएस के समकक्ष मानने का निर्णय राज्य सरकार को लेना है।"


उच्च न्यायालय ने चार जुलाई को दिए गए अपने आदेश में कहा, "जब तक राज्य सरकार या नियुक्ति अधिकारी इस डिग्री को सेवा नियमों के तहत आवश्यक योग्यता नहीं मानते, तब तक अदालत उस अधिकारी को इसे एमबीबीएस के समकक्ष मानने का निर्देश नहीं दे सकती।"


इस मामले में, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने 14 जुलाई, 2024 को खाद्य सुरक्षा अधिकारी के पद के लिए आवेदन आमंत्रित किया, जिसमें कुछ योग्यता निर्धारित की गई थी।


याचिकाकर्ता ने आयोग की लिखित परीक्षा दी और उत्तीर्ण होने के बाद उसे साक्षात्कार के लिए 'कॉल लेटर' जारी किया गया।


हालांकि, जब याचिकाकर्ता साक्षात्कार के लिए आयोग पहुंची, तो उसे साक्षात्कार में शामिल नहीं होने दिया गया।


अंत में, 29 जनवरी, 2025 को परिणाम घोषित किया गया और याचिकाकर्ता की उम्मीदवारी खारिज कर दी गई, जिसके बाद उसने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की।


उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि केंद्र सरकार ने नियमों के तहत उल्लिखित योग्यता के समकक्ष किसी अन्य योग्यता को अधिसूचित नहीं किया है। आयोग ने यह निष्कर्ष निकाला कि फिजियोथैरेपी में स्नातक की डिग्री को 'मेडिसिन' में डिग्री नहीं माना जाएगा, जो खाद्य सुरक्षा अधिकारी के पद के लिए आवश्यक है।