इजराइल की चुनौती: हूती विद्रोहियों के खिलाफ क्यों नहीं हो रहा सफल ऑपरेशन?

इजराइल ने ईरान में अपने न्यूक्लियर वैज्ञानिकों को निशाना बनाया है, लेकिन यमन में हूती विद्रोहियों के खिलाफ सफल ऑपरेशन करने में असफल रहा है। इस लेख में हम जानेंगे कि इजराइल की खुफिया चुनौतियाँ क्या हैं, हूती विद्रोहियों की पहचान में कठिनाई क्यों है, और टेक्नोलॉजी से दूरी के कारण क्या प्रभाव पड़ रहा है। इसके अलावा, एयरस्ट्राइक के परिणामों पर भी चर्चा की जाएगी।
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इजराइल की चुनौती: हूती विद्रोहियों के खिलाफ क्यों नहीं हो रहा सफल ऑपरेशन?

इजराइल की खुफिया चुनौतियाँ

ईरान में इजराइल ने अपने न्यूक्लियर वैज्ञानिकों और सैन्य अधिकारियों को सटीकता से निशाना बनाया है, लेकिन यमन में हूती विद्रोहियों के खिलाफ ऐसा कोई सफल ऑपरेशन नहीं हो पाया है। यह सवाल उठता है कि इजराइल, जिसकी खुफिया एजेंसियों की विश्वभर में पहचान है, हूती नेताओं को क्यों नहीं पकड़ पा रहा है। इसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं।


हूती विद्रोहियों की पहचान में कठिनाई

हूती संगठन की संरचना अन्य देशों की तुलना में अलग है। ईरान जैसे देशों में पदानुक्रम स्पष्ट होता है, लेकिन हूती संगठन में अधिकांश कमांडर ग्राउंड पर काम करते हैं और उनका नाम या चेहरा सार्वजनिक नहीं होता। केवल अब्दुल मलिक अल-हूती ही ऐसा नेता है जिसे पहचानना संभव है, जिससे इजराइल के लिए टारगेट लिस्ट बनाना कठिन हो जाता है।


टेक्नोलॉजी से दूरी

आधुनिक युद्ध में डेटा और लोकेशन ट्रैकिंग महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन हूती नेताओं ने जानबूझकर टेक्नोलॉजी का उपयोग नहीं किया है। वे मोबाइल फोन और ऑनलाइन संचार से दूर रहते हैं, जिससे उनकी गतिविधियों का पता लगाना मुश्किल हो जाता है।


यमन में खुफिया नेटवर्क की कमी

ईरान में इजराइल का खुफिया नेटवर्क मजबूत है, लेकिन यमन में ऐसा कोई मजबूत आधार नहीं है। इसलिए सर्जिकल ऑपरेशन करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।


एयरस्ट्राइक का प्रभाव

इजराइल ने यमन में कुछ एयरस्ट्राइक की हैं, जैसे हुदैदा और अल-सलीफ पर, लेकिन ये हमले बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाते हैं, हूती कमांडरों को नहीं।