आरिफ हबीब ने 135 अरब रुपये में खरीदी पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस
आरिफ हबीब का बड़ा कदम
आरिफ हबीब ने ख़रीद ली PIA
पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस (PIA) ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण मोड़ लिया, जब इसे आरिफ हबीब कॉरपोरेशन के नेतृत्व वाले एक कंसोर्टियम द्वारा खरीदा गया। इस सौदे के तहत एयरलाइन को 135 अरब रुपये (पाकिस्तानी मुद्रा) की राशि प्राप्त हुई, जिसके बदले में कंसोर्टियम को एयरलाइंस की 75% हिस्सेदारी मिली। नीलामी से प्राप्त राशि का 92.5% एयरलाइन के पुनर्निर्माण और सुधार में खर्च किया जाएगा। PIA के पास 32 विमान हैं, जिनमें एयरबस A320, बोइंग 737, एयरबस A330 और बोइंग 777 जैसे मॉडल शामिल हैं।
नीलामी की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए रखने के लिए इसका सीधा प्रसारण किया गया। सरकार को तीन बोलियां प्राप्त हुईं, लेकिन आरिफ हबीब के नेतृत्व वाले समूह ने सबसे बड़ी बोली लगाई। इस समूह में फातिमा फर्टिलाइजर, सिटी स्कूल्स और लेक सिटी होल्डिंग्स जैसी प्रमुख कंपनियां शामिल हैं।
आरिफ हबीब का व्यापार साम्राज्य
आरिफ हबीब का व्यापार साम्राज्य
जिस समूह ने PIA को खरीदने के लिए इतनी बड़ी राशि का निवेश किया है, उसकी पहचान काफी प्रभावशाली है। आरिफ हबीब ग्रुप पाकिस्तान का एक विशाल व्यापारिक साम्राज्य है, जिसकी स्थापना 1970 में आरिफ हबीब ने की थी। शुरुआत में यह समूह केवल शेयर बाजार और ब्रोकरेज तक सीमित था, लेकिन अब यह वित्त, खाद, और स्टील जैसे विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत है।
इस समूह की प्रमुख कंपनी, आरिफ हबीब लिमिटेड (AHL), शेयर बाजार में निवेश और बैंकिंग सेवाएं प्रदान करती है। इसके अलावा, यह कई बड़े क्षेत्रों में सक्रिय है:
- फर्टिलाइजर: फातिमा ग्रुप के माध्यम से खाद के कारोबार में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है।
- कंस्ट्रक्शन और स्टील: आयशा स्टील जैसी कंपनियों के माध्यम से स्टील और सीमेंट उत्पादन में भी प्रमुखता है।
- रियल एस्टेट: जावेदन कॉरपोरेशन के माध्यम से प्रॉपर्टी के व्यवसाय में भी सक्रियता है। इस समूह ने वैश्विक स्तर पर मित्सुबिशी और मेटल वन जैसी कंपनियों के साथ साझेदारी की है।
PIA की स्थिति
PIA की स्थिति
यह ध्यान देने योग्य है कि PIA की स्थिति कई वर्षों से खराब चल रही है। खराब प्रबंधन, कम उड़ानें, यात्रियों की शिकायतें और भारी कर्ज ने एयरलाइन को कमजोर कर दिया है। 2020 में कराची विमान हादसे और फर्जी पायलट लाइसेंस के खुलासे ने इसकी साख को और गिरा दिया। IMF के दबाव के चलते सरकार को PIA को बेचने का निर्णय लेना पड़ा।
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