आरबीआई ने रेपो रेट में की कटौती: निवेशकों के लिए क्या है इसका मतलब?

आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति का निर्णय
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 6 जून को आयोजित मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक में महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए रेपो रेट में 50 बेसिस प्वाइंट की कमी की है। अब यह दर 5.5% पर आ गई है। इस वर्ष फरवरी और अप्रैल में भी 25-25 बेसिस प्वाइंट की कटौती की गई थी, जिससे यह लगातार तीसरी बार है।
रेपो रेट में गिरावट का प्रभाव
रेपो रेट में यह कमी फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) निवेशकों के लिए एक चेतावनी है, विशेषकर उन लोगों के लिए जो इसे सुरक्षित और बेहतर रिटर्न का विकल्प मानते हैं।
आरबीआई के द्वारा किए गए बदलाव
- रेपो रेट: 50 bps घटकर 5.5%
- CRR (कैश रिजर्व रेशियो): 1% की कमी
- मौद्रिक नीति रुख: Accommodative से Neutral में परिवर्तन
इन परिवर्तनों के कारण बैंकों की फंडिंग लागत में कमी आ रही है, जिससे वे FD और सेविंग अकाउंट्स पर ब्याज दरें घटा रहे हैं।
SBI की रिपोर्ट का विश्लेषण
इस कटौती से लोन लेने वालों को लाभ होगा, लेकिन FD में निवेश करने वालों को कम ब्याज दर का सामना करना पड़ेगा। SBI की रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, फरवरी 2025 से अब तक FD की ब्याज दरों में 30 से 70 बेसिस पॉइंट की कमी आई है। सेविंग अकाउंट्स पर ब्याज भी घटकर न्यूनतम 2.70% तक पहुंच गया है।
भविष्य में दरों में और कमी की संभावना
SBI का मानना है कि वित्तीय वर्ष 2026 के दौरान RBI रेपो रेट में और 100 बिप्स की कमी कर सकता है, यदि खुदरा महंगाई (CPI) 4% से नीचे बनी रहती है और क्रेडिट ग्रोथ कमजोर रहता है।
FD निवेशकों के लिए सुझाव
- अभी का मौका: कई बैंक 7% से 8.25% के बीच ब्याज दे रहे हैं, विशेषकर छोटे और स्मॉल फाइनेंस बैंक। हालांकि, इन बैंकों में जोखिम अधिक होता है, इसलिए ₹5 लाख डिपॉजिट इंश्योरेंस की सीमा में ही निवेश करें।
- लॉन्ग टर्म FD चुनें: ब्याज दरों के गिरने के चक्र को देखते हुए 2 से 5 साल की अवधि वाली FD में निवेश करना फायदेमंद हो सकता है।
- लैडरिंग अपनाएं: निवेश को एक साथ एक अवधि में न डालें, अलग-अलग अवधि की FD बनाएं ताकि फ्लेक्सिबिलिटी बनी रहे।
अभी कई बैंक 7% से 8.25% तक की दर पर FD दे रहे हैं, लेकिन इन बैंकों में जोखिम अधिक होता है। इसलिए निवेश की राशि डिपॉजिट इंश्योरेंस की सीमा के भीतर रखें।