आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने विजयादशमी पर देश की चुनौतियों पर विचार किए
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने विजयादशमी समारोह में देश की चुनौतियों पर विचार किए। उन्होंने कश्मीर हमले, नक्सलवाद, अर्थव्यवस्था में असमानता, हिमालयी संकट और पड़ोसी देशों की अस्थिरता पर चर्चा की। भागवत ने आत्मनिर्भरता और विकास की आवश्यकता पर जोर दिया, साथ ही लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के महत्व को भी रेखांकित किया। उनके विचारों ने वर्तमान समय में भारत की स्थिति और भविष्य की दिशा को स्पष्ट किया।
Oct 2, 2025, 20:44 IST
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विजयादशमी समारोह में विचार
नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी वर्ष के विजयादशमी समारोह में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने देश के समक्ष उपस्थित चुनौतियों और भविष्य की दिशा पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने इस अवसर को केवल उत्सव नहीं, बल्कि आत्ममंथन का भी बताया।
कश्मीर हमले और अंतरराष्ट्रीय समर्थन
भागवत ने अपने भाषण की शुरुआत जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले से की, जिसमें 26 श्रद्धालुओं की जान गई थी। उन्होंने कहा कि इस घटना ने भारतीय समाज की एकता और नेतृत्व की मजबूती को दर्शाया, साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि वैश्विक स्तर पर हमारे साथ कौन खड़ा है।
नक्सलवाद पर नियंत्रण और विकास की आवश्यकता
आंतरिक सुरक्षा पर चर्चा करते हुए भागवत ने कहा कि नक्सलवाद अब काफी हद तक नियंत्रित हो चुका है। सरकार की कठोर नीतियों और जनता की जागरूकता ने इस समस्या को काबू में लाने में मदद की है। हालांकि, उन्होंने चेतावनी दी कि यदि प्रभावित क्षेत्रों में न्याय और विकास नहीं पहुंचा, तो यह समस्या फिर से उभर सकती है।
अर्थव्यवस्था में असमानता और आत्मनिर्भरता
अर्थव्यवस्था के संदर्भ में भागवत ने अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई और पूंजी का सीमित हाथों में संकेंद्रण को गंभीर चुनौती बताया। उन्होंने स्वदेशी और आत्मनिर्भरता को इसका समाधान बताते हुए कहा कि भारत को वैश्विक व्यापार नीतियों से सीख लेकर आत्मनिर्भर बनना होगा।
हिमालयी संकट पर चेतावनी
भागवत ने पर्यावरणीय चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलन, अनियमित बारिश और ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने जैसी आपदाएं बढ़ी हैं। उनके अनुसार, हिमालय केवल भारत के लिए नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की सुरक्षा और जल संसाधनों का आधार है।
पड़ोसी देशों की अस्थिरता पर चिंता
दक्षिण एशिया की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए भागवत ने कहा कि नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश में हिंसक विरोधों के कारण सरकारें बदलीं, लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा कि बदलाव केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से ही संभव है। पड़ोसी देशों को “परिवार का हिस्सा” बताते हुए उन्होंने कहा कि उनकी स्थिरता और समृद्धि भारत के लिए भी आवश्यक है।