आयुष चिकित्सा पद्धतियों को मिलेगा अंतरराष्ट्रीय मान्यता, WHO में शामिल होगा
आयुष चिकित्सा को मिलेगी वैश्विक पहचान
आयुष चिकित्सा को मिलेगा अंतरराष्ट्रीय दर्जा
आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी चिकित्सा अब केवल भारतीय पहचान तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि इन्हें वैश्विक स्वास्थ्य प्रणाली की आधिकारिक भाषा में मान्यता दी जाएगी। इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और आयुष मंत्रालय ने दिसंबर 2021 में दिल्ली में एक तकनीकी बैठक आयोजित की। इस बैठक का उद्देश्य पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य हस्तक्षेपों की वर्गीकरण (ICHI) में शामिल करना था।
आयुष मंत्रालय और WHO के बीच हुए ऐतिहासिक समझौते के तहत आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी चिकित्सा के लिए ICHI में एक विशेष मॉड्यूल विकसित किया जा रहा है, जिससे ये पद्धतियां वैश्विक स्वास्थ्य मानकों का हिस्सा बन सकें। भारत इस प्रक्रिया में तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है।
आयुष को वैश्विक स्तर पर फैलाने का उद्देश्य
यह पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच से जुड़ी है, जिन्होंने कई बार कहा है कि वैज्ञानिक मानकीकरण के माध्यम से आयुष को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाया जा सकता है। आयुष सचिव वैद्य राजेश कोटेचा ने भी स्पष्ट किया है कि ICHI में स्थान मिलने से आयुष को वैश्विक पहचान और वैज्ञानिक मान्यता मिलेगी।
दिलचस्प बात यह है कि इस बैठक में WHO के सभी छह क्षेत्रों के प्रतिनिधि शामिल हुए, जिनमें अफ्रीका, यूरोप और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र के विशेषज्ञ शामिल थे। जिनेवा स्थित WHO मुख्यालय के विशेषज्ञों के साथ-साथ भारत, ब्रिटेन, अमेरिका, ब्राजील, ईरान, नेपाल, श्रीलंका और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों ने भी भाग लिया। सभी का ध्यान पारंपरिक चिकित्सा को एक साझा, वैज्ञानिक और अंतरराष्ट्रीय ढांचे में ढालने पर था।
पारंपरिक चिकित्सा को रिसर्च का हिस्सा बनाया जाएगा
ICHI कोडिंग किसी चिकित्सा की सामान्य भाषा होती है, जिससे विभिन्न देशों के चिकित्सक और स्वास्थ्य प्रणाली यह समझ पाते हैं कि कौन-सी चिकित्सा कितनी बार की गई, कितनी प्रभावी रही और नीति स्तर पर इसका क्या महत्व है। आयुष को इसमें शामिल करने का अर्थ है कि अब पारंपरिक चिकित्सा भी वैश्विक डेटा, अनुसंधान और स्वास्थ्य नीतियों का हिस्सा बनेंगी।
WHO इस परियोजना को निर्धारित समय सीमा में, कठोर वैज्ञानिक मानकों के साथ आगे बढ़ाएगा। सरकार को उम्मीद है कि इससे न केवल अनुसंधान और नीति निर्माण को मजबूती मिलेगी, बल्कि आयुष पद्धतियों को वैश्विक स्वास्थ्य प्रणाली में स्थान मिलने का मार्ग भी प्रशस्त होगा।
