आपातकाल: लोकतंत्र की नींव को हिलाने वाला काला अध्याय

आपातकाल का ऐतिहासिक संदर्भ
भारत में आपातकाल की अवधि 1975 से 1977 तक रही, जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आंतरिक और बाहरी खतरों का हवाला देते हुए आपातकाल की घोषणा की। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को कहा कि यह आपातकाल लोकतंत्र की नींव को हिला देने वाला था, लेकिन भारत ने उस काले अध्याय से उबरने में सफलता पाई है, क्योंकि देश तानाशाही के आगे कभी नहीं झुका।
कांग्रेस पर आरोप
शाह ने विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस पार्टी पर संविधान की पवित्रता का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नेताओं को यह स्पष्ट करना चाहिए कि जब आपातकाल लागू हुआ, तब वे संविधान के रक्षक थे या भक्षक।
आपातकाल की वास्तविकता
केंद्रीय गृह मंत्री ने बुधवार को कहा कि आपातकाल कोई राष्ट्रीय आवश्यकता नहीं थी, बल्कि यह कांग्रेस और एक व्यक्ति की लोकतंत्र विरोधी मानसिकता का प्रतीक था। उन्होंने इंदिरा गांधी के संदर्भ में यह बात कही। शाह ने आपातकाल के पीड़ितों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि यह दिन हमें याद दिलाता है कि जब सत्ता तानाशाही बन जाती है, तो जनता उसे उखाड़ फेंकने की ताकत रखती है।
संविधान हत्या दिवस
शाह ने कहा कि आपातकाल कांग्रेस की सत्ता की भूख का प्रतीक था। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने इस दिन को 'संविधान हत्या दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय लिया है, ताकि नई पीढ़ी को उस समय की यातनाओं का ज्ञान हो सके। उन्होंने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता को कुचला गया, न्यायपालिका को बाधित किया गया और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया।
जनता की शक्ति
शाह ने कहा, 'देशवासियों ने 'सिंहासन खाली करो' का नारा दिया और तानाशाह कांग्रेस को उखाड़ फेंका।' उन्होंने पिछले साल घोषणा की थी कि मोदी सरकार 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाएगी, ताकि उन लोगों के योगदान को याद किया जा सके जिन्होंने इस अवधि में अमानवीय पीड़ा सहन की।