आपातकाल: भारत के लोकतंत्र का काला अध्याय

1975 में भारत में आपातकाल की घोषणा ने लोकतंत्र के इतिहास में एक काला अध्याय जोड़ा। इस दौरान संजय गांधी की विवादास्पद नीतियों ने नागरिक स्वतंत्रता को निलंबित कर दिया। हजारों लोगों की गिरफ्तारी, पत्रकारों का उत्पीड़न और नसबंदी के अभियान ने समाज पर गहरा प्रभाव डाला। जानिए इस महत्वपूर्ण घटना के बारे में और कैसे यह भारत के राजनीतिक परिदृश्य को बदलने में सहायक बनी।
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आपातकाल: भारत के लोकतंत्र का काला अध्याय

आपातकाल की घोषणा

पचास वर्ष पूर्व, भारत ने अपने लोकतंत्र के सबसे अंधेरे क्षणों में से एक का सामना किया। 25 जून 1975 को, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की। उसी रात 11:45 बजे, राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने आपातकाल लागू करने वाले सरकारी पत्र पर हस्ताक्षर किए। इस निर्णय के साथ ही नागरिक स्वतंत्रता को निलंबित कर दिया गया और असहमति को दबाने का कार्य शुरू हुआ। इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी को इस दौरान असीमित शक्तियां प्राप्त थीं। आपातकाल के दौरान संजय गांधी की भूमिका विवादास्पद रही, जिसके तहत हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया, पत्रकारों को परेशान किया गया और फिल्मों पर कड़ी सेंसरशिप लागू की गई। इस समय संजय गांधी का पांच सूत्रीय कार्यक्रम भी चल रहा था, जिसमें वयस्क शिक्षा, दहेज प्रथा का उन्मूलन, वृक्षारोपण, परिवार नियोजन और जाति प्रथा का अंत शामिल था। हालांकि, इस कार्यक्रम में परिवार नियोजन पर सबसे अधिक जोर दिया गया, जिसके तहत अस्पतालों में लोगों को जबरदस्ती पकड़कर नसबंदी की गई।


दिल्ली में घरों का ध्वंस

दिल्ली के 70 हजार घरों को उजाड़ दिया गया
संजय गांधी ने जामा मस्जिद के निकट क्षेत्र को सुंदर बनाने का निर्णय लिया। इस कार्य में उनकी मदद की मशहूर अभिनेत्री अमृता सिंह की मां रुखसाना सुल्ताना ने, जो उस समय यूथ कांग्रेस में सक्रिय थीं। रुखसाना ने गरीब मुसलमानों को समझाने का प्रयास किया कि संजय गांधी की नीतियां, चाहे वह नसबंदी हो या सफाई, उनकी प्रगति के लिए कितनी आवश्यक हैं। एक प्रसिद्ध घटना में, डीडीए के उपाध्यक्ष जगमोहन ने संजय गांधी के साथ तुर्कमान गेट के एक होटल में बैठक की, जहां जनप्रतिनिधियों ने बस्तियों को हटाने की कार्रवाई रोकने की अपील की। इसके बावजूद, बुलडोजर चले और गोलियां भी चलीं, जिससे लोगों को लॉरियों में भरकर पुश्ता की मेड शिफ्ट कॉलोनी में भेज दिया गया।


नसबंदी का अभियान

13 हजार नसबंदियां करवाईं गईं
रुखसाना सुल्ताना, जो उस समय 31 वर्ष की थीं, को संजय गांधी का दाहिना हाथ माना जाता था। उन्होंने दिल्ली के जामा मस्जिद के आसपास संवेदनशील मुस्लिम क्षेत्रों में एक वर्ष में लगभग 13 हजार नसबंदियां करवाईं। विभिन्न स्थानों पर कैंप लगाए गए, जहां नसबंदी कराने वालों को 75 रुपये, एक दिन की छुट्टी और एक डब्बा घी दिया जाता था। कुछ स्थानों पर साइकिल भी प्रदान की जाती थी। सफाई कर्मियों, रिक्शा चालकों और श्रमिक वर्ग के लोगों को जबरदस्ती नसबंदी करवाई गई।