आंग सान सू की 80वीं जयंती: संघर्ष और उपलब्धियों की कहानी

आंग सान सू, म्यांमार की प्रमुख नेता, आज 80 वर्ष की हो गईं। उनके जीवन में संघर्ष, शिक्षा और राजनीतिक उपलब्धियों का एक लंबा सफर है। 1991 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित होने के बावजूद, वह वर्तमान में जेल में हैं। जानें उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं और विवादों के बारे में, जो उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित बनाते हैं।
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आंग सान सू की 80वीं जयंती: संघर्ष और उपलब्धियों की कहानी

आंग सान सू का जन्मदिन

म्यांमार की प्रमुख नेता आंग सान सू, जो वर्षों से अपने देश के लिए संघर्ष कर रही हैं, आज 19 जून को अपना 80वां जन्मदिन मना रही हैं। वर्तमान में वह जेल में हैं, जहां म्यांमार के सैन्य शासन ने उन्हें रखा है। उन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए गए हैं। फिर भी, उनके संघर्ष के लिए उन्हें 32 साल पहले नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। हालांकि, पश्चिमी देशों में लोकतंत्र के समर्थक उनसे नाराज हैं। आइए, उनके जन्मदिन के अवसर पर आंग सान सू के जीवन से जुड़ी कुछ दिलचस्प जानकारियों पर नजर डालते हैं...


परिवार और प्रारंभिक जीवन

जन्म और परिवार
आंग सान सू का जन्म 19 जून 1945 को रंगून में हुआ था। उनके पिता, आंग सान, ने आधुनिक बर्मी सेना की स्थापना की थी और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़े थे। 1947 में, जब वह बर्मा की आजादी के लिए बातचीत कर रहे थे, तब उनकी हत्या कर दी गई। आंग सान सू को उनकी मां ने पाला, जो खुद भी बर्मा की एक प्रमुख राजनीतिक हस्ती बनीं।


शिक्षा और करियर

जब उनकी मां 1960 में भारत और नेपाल में बर्मा की राजदूत थीं, तब आंग सान सू ने नई दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से 1964 में राजनीति विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से राजनीति, दर्शन और अर्थशास्त्र की पढ़ाई की और न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र में तीन साल तक काम किया।


नोबेल पुरस्कार और राजनीतिक संघर्ष

नोबेल शांति पुरस्कार
1991 में, आंग सान सू को लोकतंत्र के लिए उनके संघर्ष के कारण नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उस समय वह नजरबंद थीं, लेकिन सदी के पहले दशक के अंत में उनकी रिहाई के लिए वैश्विक समर्थन मिला। 2008 में, वह अमेरिका का कांग्रेशनल गोल्ड मेडल पाने वाली पहली व्यक्ति बनीं, जो जेल में थीं।


राजनीतिक जीवन और विवाद

2010 में रिहाई
2010 में, म्यांमार में आम चुनाव के छह दिन बाद उन्हें नजरबंदी से मुक्त किया गया। 2012 में, उन्होंने यूरोप में अपने नोबेल पुरस्कार को ग्रहण किया और उसी वर्ष म्यांमार में चुनाव जीतकर विपक्ष की नेता बनीं। 2015 में उनकी पार्टी ने फिर से चुनाव जीते, लेकिन संवैधानिक कारणों से वह राष्ट्रपति नहीं बन सकीं।


रोहिंग्या संकट और वर्तमान स्थिति

सरकार में आने के बाद, आंग सान सू ने एक आयोग का गठन किया, जो रोहिंग्या मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर अत्याचारों की जांच करने के लिए था। हालांकि, उनकी सरकार शान और काचिन राज्यों में विवादों को सुलझाने में असफल रही। 2017 में, सरकारी बलों द्वारा रोहिंग्या पर अत्याचारों को नरसंहार का दर्जा दिया गया, लेकिन आंग सान सू ने इसे खारिज कर दिया। इसके बाद, उनके खिलाफ वैश्विक विरोध शुरू हुआ और कई पुरस्कार वापस ले लिए गए। 2020 में उनकी पार्टी ने फिर से चुनाव जीते, लेकिन 2021 में सेना ने चुनाव को फर्जी घोषित कर दिया और उन्हें हिरासत में ले लिया। वर्तमान में, आंग सान सू को भ्रष्टाचार के आरोपों में 32 साल की सजा सुनाई गई है।