अहोई अष्टमी: जानें अहोई माता की पूजा और महत्व

अहोई अष्टमी एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो संतान की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं अहोई माता की पूजा करती हैं, जिन्हें देवी पार्वती का अवतार माना जाता है। जानें इस व्रत का महत्व, पूजा विधि और इसके पीछे की पौराणिक कथा। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि कैसे इस दिन की पूजा की जाती है और इसके धार्मिक महत्व क्या हैं।
 | 
अहोई अष्टमी: जानें अहोई माता की पूजा और महत्व

अहोई माता का परिचय

अहोई अष्टमी: जानें अहोई माता की पूजा और महत्व

अहोई माता


अहोई माता कौन हैं: करवा चौथ के चार दिन बाद मनाए जाने वाले अहोई अष्टमी का व्रत संतान की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए किया जाता है। यह व्रत हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है, जो इस वर्ष 13 अक्टूबर 2025 को है। इस दिन विधिपूर्वक व्रत रखकर अहोई माता की पूजा की जाती है। इस लेख में हम जानेंगे कि अहोई माता कौन हैं और उनका महत्व क्या है।


अहोई माता का महत्व

अहोई माता कौन हैं? (Who is Ahoi Mata)

अहोई माता को देवी पार्वती का अवतार माना जाता है। उनकी पूजा विशेष रूप से संतान की सुरक्षा और दीर्घायु के लिए की जाती है। उन्हें बच्चों की रक्षक देवी के रूप में पूजा जाता है, जो सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार, अहोई माता को देवी लक्ष्मी का भी रूप माना जाता है। उन्हें स्याहु माता के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि उनकी पूजा से महिलाओं की बांझपन, गर्भपात और संतान की असमय मृत्यु जैसी समस्याएं दूर होती हैं।


अहोई अष्टमी का व्रत का महत्व

अहोई अष्टमी का व्रत क्यों रखा जाता है?

एक प्राचीन कथा के अनुसार, एक महिला के अनजाने में साही के बच्चों की मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद उसने देवी से क्षमा मांगी। देवी ने प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद दिया कि उसकी संतान सुरक्षित रहेगी। तभी से अहोई अष्टमी का व्रत संतान के कल्याण के लिए रखा जाता है।


अहोई माता की पूजा विधि

अहोई माता की पूजा कैसे करें?

सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। फिर सूर्य देव को जल अर्पित करें। इसके बाद हाथ में थोड़ा जल लेकर व्रत का संकल्प लें। किसी साफ दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएं या गत्ते की तस्वीर लगाएं। पूजा थाली में रोली, चावल, कुमकुम, फूलमाला, फल, मिठाई आदि रखें। अहोई माता को कुमकुम लगाएं और फल, फूल माला अर्पित करें। उन्हें मिठाई, मालपुए या पूड़ी-सब्जी का भोग लगाएं। अंत में अहोई माता की आरती करें और अहोई अष्टमी की व्रत कथा सुनें। रात में तारे निकलने के बाद तारों को जल से अर्घ्य दें और व्रत का पारण करें। पूजा में चढ़ाया गया श्रृंगार का सामान अपनी सास या घर की किसी बुजुर्ग महिला को दान करें।