असम में मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि पर मुख्यमंत्री का बयान: सांस्कृतिक पहचान का खतरा
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा ने राज्य में मुस्लिम जनसंख्या की संभावित वृद्धि को लेकर चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि यदि यह वृद्धि जारी रही, तो मुस्लिम जनसंख्या 50% तक पहुँच सकती है, जिससे असम की सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक संतुलन पर खतरा उत्पन्न हो सकता है। मुख्यमंत्री ने अवैध प्रवासन और भूमि सुरक्षा के मुद्दों पर भी चिंता जताई है। जानें इस विषय पर मुख्यमंत्री के विचार और असम की सामाजिक-राजनीतिक स्थिति पर इसके संभावित प्रभाव।
Jul 24, 2025, 10:46 IST
|

मुख्यमंत्री का चिंताजनक बयान
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा ने हाल ही में एक बयान दिया है, जिसमें उन्होंने राज्य की जनसंख्या संरचना को लेकर चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि आने वाले वर्षों में असम में मुस्लिम जनसंख्या 50% तक पहुँच सकती है, जो राज्य की सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक संतुलन के लिए खतरा बन सकता है।
जनसंख्या आंकड़े और भविष्य की आशंका
मुख्यमंत्री के अनुसार, 2011 की जनगणना के अनुसार असम की कुल जनसंख्या का 34% मुस्लिम है, जिसमें से 3% मूल निवासी असमिया मुसलमान हैं और 31% प्रवासी मुस्लिम हैं। यदि जनसंख्या वृद्धि इसी गति से जारी रही, तो 2031 या 2041 तक मुस्लिम जनसंख्या 50% तक पहुँच सकती है। सरमा का कहना है कि यह बदलाव असम के मूल निवासियों, विशेषकर हिंदू आदिवासियों और अन्य असमिया समुदायों को अल्पसंख्यक बना सकता है, जिससे राज्य की सांस्कृतिक और राजनीतिक संरचना में बदलाव आ सकता है।
असमिया पहचान का संकट
असम लंबे समय से अपनी 'असमिया पहचान' के संरक्षण के लिए संघर्ष कर रहा है। बंगाली भाषी मुस्लिम जनसंख्या का बढ़ना असमिया भाषा और संस्कृति के लिए खतरा माना जाता है। कई क्षेत्रों में मूल असमिया लोग पहले ही अल्पसंख्यक बन चुके हैं।
मुख्यमंत्री की चेतावनी
मुख्यमंत्री सरमा ने स्पष्ट किया है कि कई जिलों जैसे धुबरी, बारपेटा, नागांव, और दक्षिण सालमारा-मनकाचर में मूल निवासी अब अल्पसंख्यक हैं। उन्हें डर है कि वे अपनी जमीनें बेचकर भागने को मजबूर हो सकते हैं, जिससे 'सांस्कृतिक और भौगोलिक विस्थापन' की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
बांग्लादेश से अवैध प्रवासन का खतरा
सरमा ने यह भी कहा कि बांग्लादेश में हो रहे राजनीतिक और सामाजिक बदलावों के कारण सीमावर्ती क्षेत्रों में लोग असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। अवैध प्रवासन एक गंभीर मुद्दा है, जिससे राज्य में घुसपैठ और जनसंख्या असंतुलन की आशंका बढ़ गई है। असम सरकार ने 1 से 7 अगस्त के बीच स्वदेशी और मूल निवासी समुदायों को हथियार लाइसेंस के लिए आवेदन करने की अनुमति दी है। यह कदम उन क्षेत्रों में लागू होगा जहाँ मूल निवासी अल्पसंख्यक हैं।
भूमि की रक्षा के लिए कार्रवाई
पूर्वी असम के गोलाघाट ज़िले में, जो नगालैंड की सीमा से सटा है, राज्य सरकार जल्द ही निष्कासन अभियान चलाने की योजना बना रही है। यह कदम अवैध कब्जे और जनसंख्या असंतुलन को रोकने के लिए उठाया जा रहा है। मुख्यमंत्री सरमा के बयान और राज्य सरकार की नीतियाँ यह दर्शाती हैं कि असम एक बार फिर सांस्कृतिक असुरक्षा और जनसांख्यिकीय डर के दौर में प्रवेश कर रहा है।
संभावित चुनौतियाँ
यदि असम में मुस्लिम जनसंख्या बहुसंख्यक हो जाती है, तो राज्य को कई सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। असम की अस्मिता मुख्यतः असमिया भाषा और जनजातीय परंपराओं पर आधारित है। यदि बहुसंख्यक मुस्लिम जनसंख्या बंगाली भाषी प्रवासियों की होती है, तो इससे असमिया भाषा का वर्चस्व कम हो सकता है।
राजनीतिक प्रभाव
लोकतंत्र में बहुसंख्यक आबादी चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकती है। यदि मुस्लिम समुदाय बहुसंख्यक बनता है, तो वे कई निर्वाचन क्षेत्रों में राजनीतिक रूप से निर्णायक हो सकते हैं। इससे सत्ता संतुलन बदल सकता है और मूल निवासी समुदायों को लग सकता है कि उनके अधिकार कमजोर हो रहे हैं।
सामाजिक असंतुलन का खतरा
जब एक समुदाय की जनसंख्या तेजी से बढ़ती है और दूसरा समुदाय हाशिये पर चला जाता है, तो इससे सामाजिक असंतुलन और विश्वास की कमी उत्पन्न होती है। इससे सांप्रदायिक तनाव और हिंसा की संभावना बढ़ सकती है। असम की सीमा बांग्लादेश से लगी है, और यदि मुस्लिम आबादी का एक बड़ा हिस्सा अवैध प्रवासियों से जुड़ा है, तो यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती बन सकता है।
आवश्यकता संतुलन की
असम में मुस्लिम बहुसंख्यक होने का मतलब केवल जनगणना का बदलाव नहीं है, बल्कि यह राज्य की सांस्कृतिक पहचान, राजनीतिक स्वरूप और सामाजिक स्थिरता पर व्यापक प्रभाव डाल सकता है। केंद्र और राज्य सरकारों को जनसंख्या नियंत्रण, नागरिकता सत्यापन और भूमि सुरक्षा जैसे विषयों पर पारदर्शी और संवेदनशील नीति बनानी चाहिए।
मुख्यमंत्री का स्पष्टीकरण
मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने अपने बयान पर सफाई देते हुए कहा कि यह उनका व्यक्तिगत विचार नहीं है, बल्कि जनगणना का परिणाम है। 2011 की जनगणना के अनुसार, असम में 34% आबादी अल्पसंख्यक है। यदि 3% स्वदेशी असमिया मुसलमानों को हटा दिया जाए, तो 31% मुसलमान प्रवासी हैं।