असम में बांग्लादेशी प्रवास पर विवाद: सैयदा हमीद के बयान से उठा राजनीतिक तूफान

असम में बांग्लादेशी प्रवास का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है, जब सामाजिक कार्यकर्ता सैयदा हमीद ने कहा कि बांग्लादेशी भी इंसान हैं। उनके इस बयान ने राज्य में राजनीतिक हलचल मचा दी है। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इसे असम की पहचान के लिए खतरा बताया, जबकि कांग्रेस नेता ने इसे सरकार की विफलता से जोड़ा। असम समझौते की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और जनसंख्या संतुलन के मुद्दे पर भी बहस छिड़ गई है। जानें इस विवाद की गहराई और विभिन्न प्रतिक्रियाएँ।
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असम में बांग्लादेशी प्रवास पर विवाद: सैयदा हमीद के बयान से उठा राजनीतिक तूफान

बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा

असम में बांग्लादेशी घुसपैठ और नागरिकता का मुद्दा लंबे समय से एक महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक विषय बना हुआ है। हाल ही में, सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व योजना आयोग की सदस्य सैयदा हमीद ने कहा, “बांग्लादेशी भी इंसान हैं, वे यहाँ रह सकते हैं।'' इस बयान ने असम में राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है। उनके वक्तव्य ने न केवल राज्य में राजनीतिक विवाद को जन्म दिया, बल्कि असम की सांस्कृतिक पहचान और जनसंख्या संतुलन पर भी नई बहस छेड़ दी है।


मुख्यमंत्री का प्रतिक्रिया

मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने सैयदा हमीद के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी, इसे “जिन्ना के सपने को साकार करने की कोशिश” बताया। उन्होंने कहा कि इस तरह की सोच असम की पहचान और जनसंख्या संरचना के लिए खतरा है। सरमा ने लाचित बरफुकन के संघर्ष का उल्लेख करते हुए कहा कि असम अपनी भूमि और संस्कृति की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करेगा। असम जातीय परिषद (AJP) और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) ने भी सैयदा हमीद की टिप्पणी को अस्वीकार्य बताया, यह कहते हुए कि यह असम आंदोलन के दौरान किए गए बलिदानों का अपमान है।


कांग्रेस नेता की टिप्पणी

कांग्रेस नेता देबरत सैकिया ने इस विवाद को केंद्र और राज्य सरकारों की नीतिगत विफलता से जोड़ा। उन्होंने कहा कि यदि प्रधानमंत्री ने 2014 में किए गए वादों के अनुसार बांग्लादेशियों को वापस भेजने की कार्रवाई की होती, तो असम इस संकट का सामना नहीं कर रहा होता। इस बीच, असम नागरिक सम्मेलन (ANS) ने स्पष्ट किया कि सैयदा हमीद के विचार व्यक्तिगत हैं और संगठन असम समझौते की पवित्रता में विश्वास रखता है। उन्होंने 25 मार्च 1971 के बाद आए सभी बांग्लादेशी प्रवासियों की पहचान और निर्वासन की मांग की।


असम समझौते का ऐतिहासिक संदर्भ

असम में बांग्लादेशी प्रवास का मुद्दा 1971 के युद्ध और उसके बाद की स्थिति से गहराई से जुड़ा हुआ है। असम आंदोलन (1979–1985) इसी मुद्दे पर उभरा और अंततः 1985 के असम समझौते में परिणत हुआ। इस समझौते ने 24 मार्च 1971 को नागरिकता की अंतिम सीमा माना था, लेकिन इसका क्रियान्वयन अधूरा रहा, जिसके कारण विवाद आज भी जारी है। जनसांख्यिकीय बदलाव, भूमि पर अतिक्रमण और सांस्कृतिक पहचान के क्षरण की आशंका असमिया समाज को चिंतित करती है।


सैयदा हमीद का विवादित बयान

सैयदा हमीद ने एक और विवादित बयान में असम को राक्षसों की धरती बताया और कहा कि यहाँ मुसलमानों पर अत्याचार हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि पहले 'मियां' शब्द का अच्छा अर्थ था, लेकिन अब यह एक गाली बन गया है। हाल ही में, सैयदा हमीद ने एक प्रतिनिधिमंडल के साथ असम का दौरा किया और बांग्लादेशियों का समर्थन करते हुए कहा, "बांग्लादेशी होना क्या गलत है? बांग्लादेशी भी इंसान हैं।"


विवाद का व्यापक दृष्टिकोण

यह विवाद दर्शाता है कि असम में बांग्लादेशी प्रवास का मुद्दा केवल नागरिकता या विस्थापन का नहीं, बल्कि अस्मिता, सुरक्षा और राजनीतिक अस्तित्व का प्रश्न है। एक ओर मानवाधिकार और मानवीय संवेदनाएँ हैं, जबकि दूसरी ओर ऐतिहासिक समझौते और जनसंख्या संतुलन की रक्षा का संकल्प है। इस विषय पर की गई किसी भी टिप्पणी को असम के राजनीतिक-सांस्कृतिक यथार्थ के साथ जोड़कर समझना आवश्यक है।