असम में अवैध भूमि अधिग्रहण पर विश्व बैंक और एडीबी से फंडिंग रोकने की अपील

असम विधानसभा में विपक्ष के नेता देबब्रत सैकिया ने विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक से अपील की है कि वे राज्य में अवैध भूमि अधिग्रहण के लिए फंडिंग को निलंबित करें। उन्होंने दो प्रमुख परियोजनाओं का उल्लेख किया है, जो जनजातीय समुदायों के अधिकारों का उल्लंघन कर रही हैं। सैकिया ने इन परियोजनाओं के पर्यावरणीय प्रभावों और कानूनी अनुपालन की समीक्षा की मांग की है। उनका कहना है कि ये अधिग्रहण असम के जनजातीय समुदायों के अधिकारों पर सीधा हमला हैं।
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असम में अवैध भूमि अधिग्रहण पर विश्व बैंक और एडीबी से फंडिंग रोकने की अपील

असम में भूमि अधिग्रहण पर उठे सवाल


गुवाहाटी, 26 जून: असम विधानसभा में विपक्ष के नेता देबब्रत सैकिया ने विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक (एडीबी) से अपील की है कि वे राज्य में 'अवैध भूमि अधिग्रहण' के लिए फंडिंग को निलंबित करें, जो स्थानीय जनजातीय समुदायों को प्रभावित कर रहा है।


सैकिया ने विश्व बैंक और एडीबी को भेजे गए एक औपचारिक पत्र में असम में चल रहे विकास परियोजनाओं के लिए तत्काल स्वतंत्र ऑडिट और फंडिंग निलंबन की मांग की है, जो उनके अनुसार 'जनजातीय भूमि अधिकारों की संवैधानिक सुरक्षा, सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णयों और पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन कर रही हैं।'


पत्र में असम में चल रहे दो परियोजनाओं का उल्लेख किया गया है - कामरूप जिले के बर्दुआर बागान गांव और कोकराझार के पारबतझोरा में।


सैकिया ने कहा, 'असम सरकार 1,500 एकड़ भूमि को गुवाहाटी मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी (जीएमडीए) को प्रस्तावित टाउनशिप परियोजना के लिए हस्तांतरित करने की योजना बना रही है। यह भूमि राभा, बोडो, चाय और अन्य जनजातीय समुदायों द्वारा एक सदी से अधिक समय से निवास की जा रही है। यह हस्तांतरण असम (अस्थायी रूप से बसे क्षेत्रों) पट्टेदारी अधिनियम, 1971 का उल्लंघन करता है और स्थानीय जनजातीय जनसंख्या की सहमति के बिना शुरू किया गया है। इससे सरकार की जनजातीय समुदायों और पर्यावरण के प्रति प्रतिबद्धता पर सवाल उठते हैं।'


पारबतझोरा के संदर्भ में, उन्होंने कहा, 'बीटीआर सरकार ने आदानी समूह को थर्मल पावर प्लांट के लिए 3,600 बीघा जनजातीय भूमि आवंटित की है। यह आवंटन बोडो, राभा और गारो समुदायों से परामर्श किए बिना किया गया है। यह भारतीय संविधान की छठी अनुसूची का सीधा उल्लंघन है। प्रस्तावित परियोजना 5,00,000 साल और टीक के पेड़ों को नष्ट करने का खतरा पैदा करती है, जिससे पर्यावरणीय क्षति की चिंताएं बढ़ रही हैं।'


सैकिया ने समंथा बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (1997) और उड़ीसा खनन निगम बनाम पर्यावरण और वन मंत्रालय (2013) जैसे निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि जनजातीय समुदायों की सहमति के बिना भूमि अधिग्रहण की आवश्यकता है।


उन्होंने वित्तीय संस्थानों से अपील की कि वे तुरंत समीक्षा करें और किसी भी फंडिंग को निलंबित करें जब तक कि पूर्ण कानूनी अनुपालन स्थापित न हो जाए, साथ ही अधिग्रहण प्रक्रियाओं और पर्यावरणीय प्रभावों का स्वतंत्र ऑडिट भी करवाएं।


सैकिया ने कहा, 'ये भूमि अधिग्रहण संवैधानिक सुरक्षा का स्पष्ट उल्लंघन हैं और असम के जनजातीय समुदायों के अधिकारों और गरिमा पर सीधा हमला हैं। विश्व बैंक और एडीबी जैसे संस्थानों को यह पूछना चाहिए कि क्या वे प्रगति को वित्तपोषित कर रहे हैं या जनजातीय जीवन और पारिस्थितिकी के विनाश को। हम विकास के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि अन्यायपूर्ण और अवैध विकास के खिलाफ हैं। अब समय आ गया है कि फंडिंग एजेंसियां अपने सिद्धांतों के प्रति सच्ची रहें।'