असम के मुख्यमंत्री ने अवैध घुसपैठियों पर उठाए गंभीर सवाल

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने अवैध मुस्लिम घुसपैठियों द्वारा अतिक्रमण के एक पैटर्न की पहचान की है। उन्होंने मकान मालिकों को चेतावनी दी है कि उनकी संस्कृति असम की संस्कृति से मेल नहीं खाती। सरमा ने कहा कि ये घुसपैठिए पहले किराए पर मकान लेते हैं, फिर गाय की बलि देते हैं और अंत में मस्जिद बनाते हैं। उनका यह बयान असम में अवैध घुसपैठ के मुद्दे पर एक गंभीर विमर्श को जन्म देता है। जानें इस मुद्दे पर उनके विचार और असम की सामाजिक स्थिति के बारे में।
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असम के मुख्यमंत्री ने अवैध घुसपैठियों पर उठाए गंभीर सवाल

मुख्यमंत्री का बयान

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही में "अवैध मुस्लिम घुसपैठियों" द्वारा अतिक्रमण के एक "पैटर्न" की पहचान करने का दावा किया है। उन्होंने बताया कि ये घुसपैठिए पहले किराए पर मकान लेते हैं और फिर वहां गाय की बलि देते हैं। सरमा ने मकान मालिकों को चेतावनी दी कि उनकी संस्कृति असम की संस्कृति से मेल नहीं खाती। उन्होंने कहा, "यदि वे परिसर में गाय काटते हैं और यह कहते हैं कि ‘हम बीफ खा सकते हैं’, तो पास के मंदिर को हटना पड़ेगा।"


अवैध घुसपैठ का पैटर्न

मुख्यमंत्री ने आगे कहा, "पहले ये लोग मकान किराए पर लेते हैं, फिर गाय काटते हैं, और उसके बाद वहां मस्जिद बन जाती है। इससे सतरा (असम के वैष्णव मठ) को क्षेत्र छोड़ना पड़ता है। यह असम में एक स्थापित पैटर्न बन चुका है।" उन्होंने छात्र संगठनों और एनजीओ से ऐसे पैटर्न की पहचान करने का आग्रह किया, लेकिन कहा कि किसी को भी कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। यह सरकार का कार्य है।


मुस्लिम पत्रकारों की बैठक पर टिप्पणी

एक वायरल वीडियो में, मुख्यमंत्री ने मुस्लिम पत्रकारों की एक बैठक का उल्लेख करते हुए कहा, "क्या आपने कभी हिंदू पत्रकारों की कोई बैठक देखी है?" उन्होंने बताया कि उनका समुदाय लगातार दबाव में है और कुछ लोग संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि अंततः, लोगों को अपनी बहनों की शादी इन लोगों से करनी पड़ेगी।


राजनीतिक विमर्श

मुख्यमंत्री सरमा की बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ चेतावनियाँ असम की राजनीति और समाज में एक विशेष विमर्श को जन्म देती हैं। उनका कहना है कि ये घुसपैठिए राज्य का "जनसांख्यिकी संतुलन" बिगाड़ रहे हैं, जो एक गंभीर आरोप है। इसे केवल भावनात्मक या राजनीतिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि ऐतिहासिक, सामाजिक और कानूनी संदर्भों में समझना आवश्यक है।


असम में अवैध घुसपैठ का इतिहास

असम में अवैध घुसपैठ का मुद्दा नया नहीं है। 1979 से 1985 तक चला असम आंदोलन और 1985 में हुआ असम समझौता इस चिंता की पुष्टि करते हैं कि सीमावर्ती क्षेत्रों में विदेशियों की घुसपैठ ने स्थानीय नागरिकों की पहचान, संसाधनों और रोजगार पर असर डाला है। असम की संस्कृति और सामाजिक ताने-बाने को लेकर लोगों में जो डर है, वह पूरी तरह निराधार नहीं कहा जा सकता।


सामाजिक विषमता पर ध्यान

मुख्यमंत्री सरमा ने यह भी कहा कि असम में दो अलग-अलग समाज हैं। एक ऐसा समाज है जहां 22 साल की बेटियां उच्च शिक्षा प्राप्त करती हैं, जबकि दूसरा समाज ऐसा है जहां 14 साल की बच्चियों पर शादी का दबाव डाला जाता है। उन्होंने कहा कि वे इसी सामाजिक विषमता को मिटाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।