असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच सीमा विवाद का समाधान: एक नई पहल
मोदी सरकार पूर्वोत्तर में शांति और विकास के लिए प्रयासरत है। असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच 74 साल पुराने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए हाल ही में एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। इस बैठक में दोनों राज्यों के मंत्रियों ने अनसुलझे मुद्दों पर चर्चा की और सौहार्द्रपूर्ण समाधान की दिशा में कदम बढ़ाने पर सहमति जताई। यह बैठक जुलाई 2022 में हस्ताक्षरित 'नमसाई घोषणा पत्र' का परिणाम है, जो सीमा विवादों को सुलझाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।
Jun 19, 2025, 16:07 IST
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पूर्वोत्तर में शांति और विकास की दिशा में कदम
मोदी सरकार पूर्वोत्तर क्षेत्र में शांति बनाए रखने और समृद्धि लाने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है। इसके तहत विकास परियोजनाओं के साथ-साथ पुरानी सीमा विवादों को आपसी सहमति से सुलझाने का कार्य भी किया जा रहा है, ताकि भाईचारे की भावना को बढ़ावा मिले और एक विकसित भारत का सपना साकार हो सके। इस संदर्भ में असम और अरुणाचल प्रदेश के मंत्रियों ने एक महत्वपूर्ण बैठक में भाग लिया, जिसका मुख्य उद्देश्य 74 साल पुराने सीमा विवाद को सुलझाना था। यह बैठक दोनों राज्यों के बीच लंबे समय से चल रहे प्रशासनिक विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।
बैठक का विवरण और चर्चा के मुद्दे
असम के धेमाजी जिले और अरुणाचल प्रदेश के लोअर सियांग और ईस्ट सियांग जिलों की क्षेत्रीय समितियों की पांचवीं बैठक गोगामुख स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में आयोजित की गई। इस बैठक की संयुक्त अध्यक्षता असम के मंत्री जयन्त मल्ला बरुआ और अरुणाचल के मंत्री केन्तो जीनी ने की। इस दौरान दोनों पक्षों ने 13 अनसुलझे सीमा विवादों पर चर्चा की और उन्हें समयबद्ध तरीके से सुलझाने के लिए एक रूपरेखा तैयार करने पर सहमति जताई। बैठक के बाद असम के मंत्री ने कहा, “सहमति बनी है और हम सौहार्द्रपूर्ण समाधान की ओर बढ़ रहे हैं।” वहीं अरुणाचल प्रदेश के मंत्री ने कहा, “बातचीत सार्थक रही। हमें विश्वास है कि दोनों मुख्यमंत्रियों के दूरदर्शी नेतृत्व में हम अगले दो महीनों में स्थायी समाधान तक पहुँचेंगे।”
नमसाई घोषणा पत्र का महत्व
यह बैठक जुलाई 2022 में हुए ऐतिहासिक 'नमसाई घोषणा पत्र' का परिणाम है, जिसे असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने हस्ताक्षरित किया था। इस घोषणा पत्र में 86 गांवों से संबंधित 804 किलोमीटर लंबी सीमारेखा पर चल रहे विवादों को सुलझाने की रूपरेखा तय की गई थी। अप्रैल 2023 में असम और अरुणाचल प्रदेश की सरकारों ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के समक्ष एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके तहत 2007 में स्थानीय आयोग के समक्ष जिन 123 गांवों पर दावा किया गया था, उनमें से 71 पर सौहार्दपूर्ण समाधान निकाला गया।
सीमा विवाद का ऐतिहासिक संदर्भ
असम-अरुणाचल सीमा विवाद की जड़ें 1951 में हैं, जब नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर ट्रैक्ट (NEFT) को असम से अलग कर अरुणाचल प्रदेश का नाम दिया गया। उस समय सीमाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया था। 1987 में अरुणाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद भी यह विवाद बना रहा, जिससे सीमावर्ती इलाकों में तनाव और प्रशासनिक अस्थिरता बनी रही।
सहयोगात्मक मॉडल की दिशा में कदम
दोनों राज्यों ने सहयोगात्मक मॉडल अपनाया है, जो एक बड़ा बदलाव है। पहले जहां सीमावर्ती विवाद टकराव और राजनीतिक बयानबाज़ी से घिरे रहते थे, वहीं अब संयुक्त समितियाँ, साझा नेतृत्व और समान प्रतिनिधित्व के माध्यम से समाधान की कोशिश की जा रही है। बैठक के अगले चरण में विवादित क्षेत्रों का सीमांकन और संयुक्त प्रशासन की व्यावहारिक व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। यदि यह प्रक्रिया सफल होती है, तो यह पूर्वोत्तर भारत के सबसे पुराने सीमा विवादों में से एक को स्थायी समाधान की ओर ले जाएगी।
भविष्य की संभावनाएँ
असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच बातचीत न केवल क्षेत्रीय स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत के अन्य अंतर-राज्यीय सीमा विवादों के समाधान के लिए एक आदर्श मॉडल भी प्रस्तुत करती है। सौहार्द्र, संवाद और साझा नेतृत्व के इस मार्ग से भाईचारे और एकता की भावना को भी बल मिलेगा।