अरावली पर्वतमाला पर कांग्रेस नेता जयराम रमेश के चार सवाल
अरावली पर्वतमाला को लेकर उठे सवाल
अरावली पर्वतमाला के पुनर्परिभाषा को लेकर चल रहे विवाद के बीच, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव से रविवार को चार महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे। उन्होंने चेतावनी दी कि इस प्रक्रिया से अरावली और अन्य छोटी पहाड़ियों के साथ-साथ कई भू आकृतियों का विनाश हो सकता है।
रमेश ने अपने पत्र में कहा कि अरावली पहाड़ियों की पुनर्परिको को लेकर चिंताएं स्वाभाविक हैं, क्योंकि इसे 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली भू-आकृतियों तक सीमित किया गया है।
उन्होंने पहले प्रश्न में पूछा, 'क्या यह सच नहीं है कि राजस्थान में 2012 से अरावली पहाड़ियों और पर्वतमालाओं की परिभाषा भारतीय वन सर्वेक्षण की 28 अगस्त 2010 की रिपोर्ट पर आधारित है, जिसमें कहा गया है कि सभी इलाके जिनका ढलान तीन डिग्री या उससे अधिक है, उन्हें पहाड़ियों के रूप में माना जाएगा?'
इसके साथ ही, रमेश ने बताया कि ढलान की दिशा में 100 मीटर चौड़ा बफर जोड़ा जाएगा, ताकि 20 मीटर ऊंचाई की पहाड़ी के संभावित विस्तार को ध्यान में रखा जा सके।
दूसरे प्रश्न में उन्होंने कहा, 'क्या यह सच नहीं है कि भारतीय वन सर्वेक्षण ने 20 सितंबर 2025 को पर्यावरण मंत्रालय को भेजे गए पत्र में कहा था कि अरावली की छोटी पहाड़ी संरचनाएं मरुस्थलीकरण के खिलाफ प्राकृतिक अवरोध के रूप में कार्य करती हैं?'
रमेश ने यह भी कहा कि हवा के साथ उड़ने वाली रेत के खिलाफ अवरोध की सुरक्षा क्षमता उसकी ऊंचाई के अनुपात में बढ़ती है।
तीसरे प्रश्न में उन्होंने पूछा, 'क्या यह सच नहीं है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि राजस्थान में 164 खनन पट्टे अरावली पहाड़ियों के अंदर स्थित थे?'
अंत में, चौथे प्रश्न में उन्होंने चेतावनी दी कि इस नई परिकल्पना के तहत कई छोटी पहाड़ियां और भू आकृतियां नष्ट हो जाएंगी, जिससे चार राज्यों में फैली अरावली पर्वतमाला की भौगोलिक और पारिस्थितिक अखंडता को खतरा होगा।
कांग्रेस का आरोप है कि नई परिकल्पना के तहत 90 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र संरक्षित नहीं रहेगा और खनन गतिविधियों के लिए खुल जाएगा। इस मुद्दे पर विवाद के बाद, केंद्र ने राज्यों को निर्देश दिए हैं कि पर्वत श्रृंखला के भीतर नए खनन पट्टे देने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए।
