अरावली पर्वतमाला की नई परिभाषा: सरकार का खनन पर स्पष्ट रुख
केंद्र सरकार ने अरावली पर्वतमाला की नई परिभाषा को लेकर उठे विवाद पर स्पष्टता दी है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा है कि इस बदलाव से खनन को कोई छूट नहीं मिलेगी और संरक्षण की दीवार पहले से अधिक मजबूत होगी। उन्होंने यह भी बताया कि अरावली क्षेत्र में खनन की अनुमति केवल सीमित क्षेत्र में ही दी जाएगी। जानें इस मुद्दे पर सरकार का रुख और इसके संभावित प्रभावों के बारे में।
| Dec 22, 2025, 20:09 IST
अरावली पर्वतमाला की नई परिभाषा पर सरकार का बयान
अरावली पर्वतमाला की नई परिभाषा को लेकर उठे विवाद के बीच, केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि इस बदलाव से खनन गतिविधियों को कोई छूट नहीं मिलेगी और संरक्षण की दीवार पहले से अधिक मजबूत होगी। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने बताया कि अरावली का कुल क्षेत्रफल लगभग 1,47,000 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें से केवल 2 प्रतिशत क्षेत्र में ही खनन की अनुमति है, और वह भी विस्तृत अध्ययन और सतत योजना के बाद। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि दिल्ली क्षेत्र में किसी भी प्रकार का खनन नहीं किया जाएगा और अरावली के भीतर मौजूद 20 से अधिक आरक्षित वन और संरक्षित क्षेत्र पूरी तरह सुरक्षित रहेंगे。
केंद्र सरकार ने उन खबरों को पूरी तरह से खारिज कर दिया है, जिनमें कहा गया था कि अरावली की परिभाषा में बदलाव से बड़े पैमाने पर खनन का रास्ता खुल रहा है। सरकार का कहना है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा स्वीकृत यह ढांचा नए खनन पट्टों पर रोक लगाता है, जब तक कि व्यापक प्रबंधन योजना तैयार नहीं हो जाती। सरकार के अनुसार, यह परिभाषा चार राज्यों में एकरूपता लाने के लिए बनाई गई है ताकि अस्पष्टता समाप्त हो सके और दुरुपयोग रोका जा सके। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि अरावली के बारे में जानबूझकर भ्रम फैलाया जा रहा है।
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अरावली की लड़ाई केवल एक गणितीय सवाल नहीं है, बल्कि यह विश्वास की लड़ाई है। मुद्दा यह नहीं है कि कागज पर कितने प्रतिशत क्षेत्र संरक्षित है, बल्कि यह है कि जमीन पर क्या बचेगा। सरकार के दावे मजबूत हैं, आंकड़े आकर्षक हैं और अदालत की मुहर भी लगी है। एक ओर सत्ता पक्ष हर सवाल को भय फैलाने का आरोप लगाकर टाल रहा है, वहीं विपक्ष हर सरकारी कदम को विनाश की साजिश बता रहा है। वास्तव में, अरावली न तो भाजपा की है और न कांग्रेस की; यह इस क्षेत्र के पानी, हवा और जीवन की रीढ़ है। इतिहास गवाह है कि पहाड़ चुपचाप कट जाते हैं, लेकिन शोर तब मचता है जब बहुत देर हो चुकी होती है।
