अमेरिका की चाबहार पोर्ट पर छूट: भारत के लिए नई रणनीतिक दिशा

अमेरिका ने भारत को ईरान के चाबहार पोर्ट पर 6 महीने की पाबंदी से छूट दी है, जो भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक कदम है। यह निर्णय भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते की दिशा में तेजी लाने का संकेत है। चाबहार पोर्ट, जिसे मध्य एशिया का गोल्डन गेट कहा जाता है, भारत की क्षेत्रीय व्यापार और कनेक्टिविटी रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। अमेरिका का यह कदम भारत की रणनीतिक आवश्यकताओं को समझने का संकेत देता है, जिससे दोनों देशों के बीच संबंधों में लचीलापन बढ़ता है।
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अमेरिका की चाबहार पोर्ट पर छूट: भारत के लिए नई रणनीतिक दिशा

अमेरिका की चाबहार पोर्ट पर छूट

अमेरिका की चाबहार पोर्ट पर छूट: भारत के लिए नई रणनीतिक दिशा

चाबहार पोर्ट

अमेरिका ने भारत को ईरान के चाबहार पोर्ट पर अपने कार्य जारी रखने के लिए 6 महीने की पाबंदी से छूट दी है। यह निर्णय पहली नजर में सामान्य प्रतीत होता है, लेकिन यह वॉशिंगटन की प्राथमिकताओं में बदलाव को दर्शाता है। विदेश मंत्रालय ने बताया कि यह कदम भारत के लिए महत्वपूर्ण राहत है, क्योंकि चाबहार पोर्ट क्षेत्रीय व्यापार और कनेक्टिविटी की रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

भारत के लिए महत्वपूर्ण कूटनीतिक संकेत

यह छूट उस समय आई है जब भारत और अमेरिका एक महत्वपूर्ण व्यापार समझौते की दिशा में तेजी से बढ़ रहे हैं। यह सौदा दोनों देशों के बीच टैरिफ ढांचे को नया रूप दे सकता है। चाबहार पोर्ट भारत के लिए केवल एक बंदरगाह नहीं है, बल्कि यह रणनीतिक आत्मनिर्भरता का प्रतीक भी है। इसके माध्यम से भारत पाकिस्तान को बाईपास करते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशिया से जुड़ सकता है। अमेरिका का यह निर्णय स्पष्ट संकेत देता है कि वह भारत की रणनीतिक आवश्यकताओं को समझता है और संबंधों में लचीलापन दिखाने को तैयार है।

चाबहार की रणनीतिक महत्वता

चाबहार पोर्ट को लंबे समय से मध्य एशिया का गोल्डन गेट माना जाता है। इसकी रणनीतिक महत्वता 1970 के दशक से स्थापित है। भारत ने इस पर काम 2001 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय शुरू किया था, लेकिन अमेरिका-ईरान तनाव के कारण यह ठप हो गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में यह परियोजना फिर से शुरू हुई और मई 2024 में भारत ने ईरान के साथ 10 साल का करार किया, जिससे इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड को पोर्ट चलाने का अधिकार मिला। यह पोर्ट भारत को न केवल व्यापारिक बल्कि भू-राजनीतिक मजबूती भी प्रदान करता है, खासकर पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट और चीन की बेल्ट ऐंड रोड पहल के मुकाबले।

क्षेत्रीय सहयोग और अमेरिका की स्वीकृति

अमेरिका की यह नई छूट 28 अक्टूबर को समाप्त होने वाली थी, लेकिन भारत के अनुरोध पर इसे बढ़ा दिया गया। भारत ने तर्क दिया कि यदि पोर्ट पर रोक लगती है, तो अफगानिस्तान और मध्य एशिया से व्यापारिक संपर्क टूट जाएगा। यह पोर्ट इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो भारत को रूस, मध्य एशिया और यूरोप से जोड़ता है। उज़्बेकिस्तान और रूस जैसे देश भी इस मार्ग को चीन के प्रभाव का विकल्प मानते हैं।

ट्रंप का संकेत

इस बीच, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दक्षिण कोरिया में APEC बैठक के दौरान कहा कि वह जल्द ही भारत के साथ व्यापार समझौता करेंगे। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के प्रति अपने सम्मान का भी उल्लेख किया। यह बयान स्पष्ट करता है कि वॉशिंगटन अब भारत को केवल एक सहयोगी नहीं, बल्कि एक रणनीतिक साझेदार के रूप में देख रहा है। कुल मिलाकर, चाबहार पर मिली छूट न केवल भारत के लिए आर्थिक राहत है, बल्कि यह संकेत भी है कि अमेरिका अपनी इंडिया स्ट्रेटेजी को नए सिरे से आकार दे रहा है, जिसमें भारत एक मजबूत, स्वतंत्र और भरोसेमंद भागीदार के रूप में उभर रहा है।