अमेरिका का भारत पर आर्थिक दबाव: ट्रंप का नया टैरिफ बम

अमेरिकी राष्ट्रपति का कड़ा कदम
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के खिलाफ एक महत्वपूर्ण आर्थिक कार्रवाई की है। उन्होंने रूस से कच्चे तेल के आयात पर आपत्ति जताते हुए भारतीय उत्पादों पर 25% 'Penalty Tariff' लगाने का निर्णय लिया है। यह नया टैरिफ 5 अप्रैल को लागू किए गए 10% 'Baseline Tariff' और 7 अगस्त से लागू 25% 'Retaliatory Tariff' के अतिरिक्त होगा, जिससे अमेरिका में भारतीय उत्पादों पर कुल शुल्क 60% हो जाएगा। यह पेनल्टी टैरिफ 27 अगस्त से प्रभावी होगा।
Goldman Sachs का आकलन
Goldman Sachs के अनुसार, इस टैरिफ के कारण भारत की GDP ग्रोथ FY26 में 6% से नीचे गिर सकती है। इस टैरिफ को ध्यान में रखते हुए, Goldman Sachs ने भारत के GDP ग्रोथ के अनुमान को 6.5% से घटाकर 6.4% कर दिया है। उनका कहना है कि यदि यह टैरिफ लंबे समय तक लागू रहता है, तो अमेरिका में निर्यात आधारित क्षेत्रों की प्रतिस्पर्धा में कमी आएगी, जिससे भारत की GDP पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा, Goldman Sachs ने भारत में महंगाई के संकेतक CPI को 3% पर बनाए रखने का अनुमान लगाया है, जो घरेलू मांग में कमी का संकेत है।
RBI का दृष्टिकोण
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने वर्तमान में रेपो रेट को 5.5% पर स्थिर रखा है और FY26 के लिए GDP ग्रोथ का अनुमान 6.5% के आसपास बनाए रखा है। RBI का मानना है कि यह टैरिफ अस्थायी हो सकता है, लेकिन यदि निर्यात में गिरावट आती है, तो मौद्रिक नीति पर दबाव बढ़ सकता है। टैरिफ के कारण रुपये में कमजोरी के संकेत पहले से ही देखे जा रहे हैं, जिसे नियंत्रित करने के लिए RBI ने डॉलर की बिक्री की है।
डेलॉइट की राय
डेलॉइट इंडिया का अनुमान है कि 50% टैरिफ से भारत के श्रम-प्रधान उद्योग जैसे टेक्सटाइल, लेदर, मरीन उत्पाद और रसायन प्रभावित होंगे। इसके अलावा, अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर भी दबाव बढ़ेगा। डेलॉइट के विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रंप का 50% टैरिफ वास्तव में एक जियोपॉलिटिकल दबाव की रणनीति है, जिसका उद्देश्य भारत को रूसी तेल के आयात को कम करने और अमेरिकी मांगों के अनुसार व्यापार नीतियों में बदलाव करने के लिए मजबूर करना है।
अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
2024 में भारत का अमेरिका को निर्यात 86.5 अरब डॉलर था, जिसमें से लगभग 55% उन क्षेत्रों से है जो इस टैरिफ से प्रभावित होंगे। निर्यात प्रतिस्पर्धा में कमी से भारत का व्यापार घाटा बढ़ सकता है और विदेशी निवेश पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। Goldman Sachs के अनुसार, यदि भारत कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं करता है, तो GDP ग्रोथ में 40-50 बेसिस पॉइंट्स का नुकसान हो सकता है।
संभावित समाधान
भारत को अपने विदेशी व्यापार को और अधिक विविधता प्रदान करनी चाहिए, जिससे अमेरिकी बाजार पर निर्भरता कम हो सके। इसके अलावा, भारत अपनी कच्चे तेल की आयात नीति में कुछ बदलाव कर सकता है, जिससे अमेरिकी दबाव कम हो सके। भारतीय निर्यातकों को सरकारी समर्थन प्रदान किया जा सकता है, जिससे वे अधिक स्वतंत्रता से निर्यात कर सकें। अंततः, इसका स्थायी समाधान अमेरिका के साथ एक व्यापार समझौता करना होगा।
भारत का विश्वास खोना महंगा पड़ सकता है
ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी की वरिष्ठ सदस्य और राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार रह चुकीं निक्की हेली सहित कई रिपब्लिकन नेताओं का कहना है कि अमेरिका को भारत का विश्वास नहीं खोना चाहिए। ट्रंप को चीन के मामले में सख्ती बरतनी चाहिए, लेकिन भारत के साथ संबंधों में सख्ती से बचना चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था और रणनीतिक हितों को टैरिफ के लाभ से अधिक नुकसान हो सकता है।