अमित शाह ने ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे होने पर व्यक्त की भावनाएं

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे होने पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने इस गीत के महत्व और युवाओं में इसके प्रभाव को उजागर किया। 7 नवंबर 2025 से 7 नवंबर 2026 तक मनाए जाने वाले उत्सव की जानकारी देते हुए, शाह ने नागरिकों से अपील की कि वे इसे सामूहिक रूप से गाएं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस उत्सव का उद्घाटन करेंगे, जो भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित करने वाले इस गीत की महत्ता को दर्शाता है।
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अमित शाह ने ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे होने पर व्यक्त की भावनाएं

‘वंदे मातरम्’ का महत्व और उत्सव

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को कहा कि ‘वंदे मातरम्’ आज भी देशवासियों के दिलों में राष्ट्रवाद की अमर ज्योति को प्रज्वलित करता है। यह गीत युवाओं में एकता, देशभक्ति और नई ऊर्जा का स्रोत बना हुआ है।


भारत के राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ की 150वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में 7 नवंबर 2025 से 7 नवंबर 2026 तक एक साल का स्मरणोत्सव मनाया जाएगा। शाह ने ‘एक्स’ पर साझा किए गए संदेश में कहा कि यह गीत केवल शब्दों का समूह नहीं है, बल्कि यह भारत की आत्मा की आवाज है।


उन्होंने आगे कहा, ‘वंदे मातरम्’ ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ पूरे देश को एकजुट किया और स्वतंत्रता की भावना को मजबूत किया। इस गीत ने क्रांतिकारियों में मातृभूमि के प्रति अटूट समर्पण और बलिदान की भावना को भी जागृत किया।


शाह ने कहा, ‘हमारा राष्ट्रीय गीत इस वर्ष 150 वर्ष पूरे कर रहा है।’ उन्होंने नागरिकों से अपील की कि वे अपने परिवारों के साथ मिलकर ‘वंदे मातरम्’ का पूरा संस्करण गाएं, ताकि यह भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहे।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को इंदिरा गांधी इनडोर स्टेडियम में इस उत्सव का उद्घाटन करेंगे और एक स्मारक डाक टिकट एवं सिक्का भी जारी करेंगे।


यह कार्यक्रम उस गीत के वर्षभर चलने वाले राष्ट्रव्यापी आयोजन की औपचारिक शुरुआत का प्रतीक होगा, जिसने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित किया और आज भी राष्ट्रीय गौरव एवं एकता की भावना को जागृत करता है। ‘वंदे मातरम्’ की रचना बंकिम चंद्र चटर्जी ने की थी और इसे पहली बार 7 नवंबर 1875 को साहित्यिक पत्रिका ‘बंगदर्शन’ में प्रकाशित किया गया था।


एक सरकारी बयान के अनुसार, बंकिम चंद्र चटर्जी ने इस स्तुति को अपने प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनंदमठ’ में शामिल किया, जो 1882 में प्रकाशित हुआ। इसे रवींद्रनाथ टैगोर ने संगीतबद्ध किया था। यह गीत राष्ट्र की सांस्कृतिक, राजनीतिक और सभ्यतागत चेतना का अभिन्न हिस्सा बन चुका है।