अमित शाह का भाषण: घुसपैठ और लोकतंत्र पर गंभीर चिंतन

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में घुसपैठ, जनसांख्यिकीय परिवर्तन और लोकतंत्र पर एक महत्वपूर्ण भाषण दिया। उन्होंने घुसपैठ को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बताया और इसे केवल राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि एक सामरिक चुनौती के रूप में प्रस्तुत किया। शाह ने शरणार्थियों और घुसपैठियों के बीच का अंतर स्पष्ट किया और मतदाता सूची में अवैध प्रवासियों की समावेशिता को रोकने की आवश्यकता पर जोर दिया। उनके भाषण ने राजनीतिक विमर्श में नई दिशा दी है और यह दर्शाता है कि घुसपैठ का मुद्दा केवल सीमा सुरक्षा तक सीमित नहीं है।
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अमित शाह का भाषण: घुसपैठ और लोकतंत्र पर गंभीर चिंतन

घुसपैठ और राष्ट्रीय सुरक्षा

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में ‘घुसपैठ, जनसांख्यिकीय परिवर्तन और लोकतंत्र’ विषय पर एक महत्वपूर्ण भाषण दिया। इस भाषण ने न केवल राजनीतिक चर्चा में नया मोड़ लाया है, बल्कि इसके सामरिक और भूराजनीतिक पहलू भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि घुसपैठ केवल एक राजनीतिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा और लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है। यह खतरा केवल सीमा सुरक्षा का मामला नहीं है, बल्कि यह राज्य और केंद्र दोनों की जिम्मेदारी है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भारत की सीमा नीति में सहयोग और समन्वय की आवश्यकता है।


राजनीतिक दलों की भूमिका

अमित शाह ने यह भी कहा कि कुछ राजनीतिक दल घुसपैठियों को वोट बैंक के रूप में देखते हैं, जिसके कारण कुछ राज्यों में अवैध प्रवासियों को संरक्षण मिलता है। यह आरोप न केवल विपक्ष पर है, बल्कि यह भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अवैध हस्तक्षेप की संभावना को भी उजागर करता है। उन्होंने असम में मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धि दर 29.6 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती जिलों में 70 प्रतिशत तक के उछाल के आंकड़े पेश किए, जो घुसपैठ और जनसांख्यिकीय परिवर्तन के प्रति गंभीर चेतावनी हैं।


भूराजनीतिक दृष्टिकोण

भूराजनीतिक दृष्टि से, अमित शाह ने यह सवाल उठाया कि गुजरात और राजस्थान की सीमाओं पर घुसपैठ क्यों नहीं होती, जबकि पूर्वी सीमाओं पर यह बढ़ रही है। यह सीमा प्रबंधन और पड़ोसी देशों, विशेषकर बांग्लादेश और पाकिस्तान के साथ भारत की सुरक्षा रणनीति की जटिलताओं को उजागर करता है। उन्होंने झारखंड के जनजातीय समुदायों की गिरावट का उल्लेख करते हुए कहा कि घुसपैठ केवल आर्थिक या राजनीतिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह सामाजिक संरचना पर भी असर डालता है।


शरणार्थियों और घुसपैठियों में अंतर

अमित शाह ने शरणार्थियों और घुसपैठियों के बीच का अंतर स्पष्ट किया। उनका कहना था कि शरणार्थी धार्मिक उत्पीड़न से भागकर आते हैं, जबकि घुसपैठिये अवैध रूप से आर्थिक या अन्य कारणों से प्रवेश करते हैं। यह वर्गीकरण न केवल नीति निर्माण के लिए आवश्यक है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की स्थिति को स्पष्ट करने के लिए भी महत्वपूर्ण है।


मतदाता सूची में अवैध प्रवासियों की समावेशिता

इस भाषण का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि मतदाता सूची में अवैध प्रवासियों की समावेशिता को रोकने की आवश्यकता है। शाह ने इसे भारत के चुनावी लोकतंत्र के लिए एक चुनौती बताया और कहा कि केवल नागरिकों को ही मतदान का अधिकार होना चाहिए। यह कदम चुनावी प्रक्रियाओं की पारदर्शिता और राष्ट्रीय सुरक्षा को जोड़ता है।


अमित शाह का विस्तृत संबोधन

अमित शाह ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया का समर्थन करते हुए कहा कि इसमें घुसपैठियों का शामिल होना संविधान की भावना को दूषित करता है। उन्होंने कहा कि केंद्र घुसपैठियों से निपटने के लिए ‘पता लगाने, हटाने और निर्वासित करने’ की नीति का पालन करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि घुसपैठ और निर्वाचन आयोग की कवायद को राजनीतिक नजरिये से नहीं देखना चाहिए।


विपक्ष की प्रतिक्रिया

उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वह एसआईआर के मुद्दे पर ‘इनकार की मुद्रा’ में है। शाह ने कहा कि यह प्रक्रिया विपक्षी पार्टी की सरकार के दौरान भी हुई थी। उन्होंने कहा कि यदि किसी को समस्या है, तो वह अदालत जा सकता है।


घुसपैठियों की पहचान

शाह ने कहा कि घुसपैठियों और शरणार्थियों के बीच अंतर को समझना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि घुसपैठिये वे लोग हैं जो धार्मिक उत्पीड़न का सामना नहीं करते और आर्थिक कारणों से अवैध रूप से भारत में प्रवेश करना चाहते हैं।


जनसंख्या के आंकड़े

उन्होंने आजादी के बाद की जनगणना के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि 1951 में हिंदुओं की आबादी 84 प्रतिशत थी, जबकि मुसलमानों की 9.8 प्रतिशत। 2011 में यह आंकड़ा 79 प्रतिशत और 14.2 प्रतिशत था। उन्होंने कहा कि यह वृद्धि दर घुसपैठ के कारण है, न कि प्रजनन दर के कारण।