अबू आजमी के बयान से महाराष्ट्र में भाषा विवाद फिर से गरमाया

समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आसिम आजमी के हालिया बयान ने महाराष्ट्र में एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने मराठी में जवाब देने से इनकार करते हुए केवल हिंदी में बोलने का निर्णय लिया, जिससे राजनीतिक हलचल मच गई है। बीजेपी विधायक अतुल भातखलकर ने उनके खिलाफ एफआईआर की मांग की है, जबकि मनसे ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी है। इस विवाद ने भिवंडी में मराठी-हिंदी मुद्दे को फिर से गरमा दिया है। जानें इस पर और क्या प्रतिक्रियाएँ आई हैं।
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अबू आजमी के बयान से महाराष्ट्र में भाषा विवाद फिर से गरमाया

अबू आजमी का विवादास्पद बयान

अबू आजमी के बयान से महाराष्ट्र में भाषा विवाद फिर से गरमाया

सपा नेता अबू आसिम आजमी

समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आसिम आजमी के हालिया बयान ने महाराष्ट्र की राजनीतिक स्थिति में हलचल पैदा कर दी है। भिवंडी में एक कार्यक्रम के दौरान, आजमी ने कहा कि वह मराठी में जवाब नहीं देंगे और केवल हिंदी में बोलेंगे, क्योंकि उत्तर प्रदेश में कोई भी मराठी नहीं समझता। उनके इस बयान ने राजनीतिक चर्चाओं को जन्म दिया है।

बीजेपी विधायक अतुल भातखलकर ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर आजमी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि आजमी पहले भी मराठी भाषा का अपमान कर चुके हैं और विधानसभा में उन्होंने हिंदी में शपथ ली थी। भातखलकर ने यह भी कहा कि महाराष्ट्र में रहकर मराठी भाषा के प्रति ऐसी नफरत केवल अबू आसिम आजमी जैसे लोगों में हो सकती है।

मनसे का विरोध

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने भी आजमी के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। ठाणे जिला अध्यक्ष परेश चौधरी ने कहा कि अगर आजमी को मराठी बोलने में शर्म आती है, तो हम मनसे के तरीके से जवाब देंगे। आजमी के बयान के बाद भिवंडी में मराठी-हिंदी विवाद एक बार फिर गरमा गया है, जिससे राजनीतिक टकराव बढ़ गया है।

मराठी में जवाब देने से किया इनकार

पत्रकारों ने भिवंडी-कल्याण रोड चौड़ीकरण पर आजमी से प्रतिक्रिया मांगी थी। इस दौरान मराठी मीडिया ने उनसे मराठी में जवाब देने का अनुरोध किया, लेकिन आजमी ने कहा कि उन्हें मराठी बोलने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने सवाल उठाया कि उत्तर प्रदेश के लोग मराठी कैसे समझेंगे?

यह पहली बार नहीं है जब मराठी भाषा को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ है। हाल ही में, महाराष्ट्र सरकार ने तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को अनिवार्य किया था, जिसके खिलाफ विपक्ष ने विरोध किया था, और अंततः सरकार को अपना निर्णय वापस लेना पड़ा। इसके बावजूद, यह विवाद अब भी जारी है।