अनिल अंबानी को बॉम्बे हाईकोर्ट से मिली राहत, बैंकों की कार्रवाई पर रोक
अनिल अंबानी को मिली बड़ी राहत
अनिल अंबानी
बॉम्बे हाईकोर्ट ने अनिल अंबानी और उनकी कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशंस लिमिटेड को महत्वपूर्ण राहत प्रदान की है। अदालत ने तीन बैंकों द्वारा खातों को धोखाधड़ी घोषित करने के प्रयास पर रोक लगा दी है। न्यायालय ने कहा कि इस प्रक्रिया में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के दिशा-निर्देशों का सही तरीके से पालन नहीं किया गया था।
फॉरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट पर संदेह
जस्टिस मिलिंद जाधव ने अपने आदेश में कहा कि बैंकों की कार्रवाई एक फॉरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट पर आधारित थी, जिसे BDO LLP ने तैयार किया था। हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि इस रिपोर्ट पर भरोसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसमें किसी योग्य चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) के हस्ताक्षर नहीं थे, जो RBI के दिशा-निर्देशों के अनुसार अनिवार्य है।
अंतरिम राहत का महत्व
हाईकोर्ट ने कहा कि यदि अनिल अंबानी और रिलायंस कम्युनिकेशंस को अंतरिम राहत नहीं दी जाती, तो उन्हें गंभीर और अपूरणीय नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। अदालत के अनुसार, खातों को धोखाधड़ी घोषित करने के परिणाम गंभीर हो सकते हैं, जैसे कि ब्लैकलिस्ट होना, नए बैंक लोन या क्रेडिट से वंचित रहना, आपराधिक मामले दर्ज होना और प्रतिष्ठा को भारी नुकसान।
न्याय के सिद्धांतों पर जोर
कोर्ट ने कहा कि न्याय के सिद्धांतों के अनुसार, न्याय केवल होना ही नहीं चाहिए, बल्कि इसे होते हुए भी दिखना चाहिए। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी बाहरी कंसल्टेंट द्वारा तैयार की गई फॉरेंसिक रिपोर्ट के आधार पर बैंकों को शो-कॉज नोटिस जारी करने का अधिकार नहीं है।
बैंकों की देरी पर नाराज़गी
हाईकोर्ट ने बैंकों की देरी से की गई कार्रवाई पर भी नाराज़गी व्यक्त की। कोर्ट ने कहा कि यह एक ऐसा मामला है, जहां बैंक 2013 से 2017 की अवधि के लिए फॉरेंसिक ऑडिट 2019 में करवाने के लिए गहरी नींद से जागे।
बैंकों और अंबानी के तर्क
अनिल अंबानी ने इंडियन ओवरसीज बैंक, IDBI बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा द्वारा जारी शो-कॉज नोटिस को चुनौती दी थी। उनका कहना था कि BDO LLP एक कंसल्टिंग फर्म है, ऑडिट फर्म नहीं, और इसलिए वह फॉरेंसिक ऑडिट करने के लिए योग्य नहीं थी। वहीं बैंकों ने दलील दी कि ऑडिट 2016 के RBI दिशा-निर्देशों के तहत कराया गया था, जिसमें बाहरी ऑडिटर का CA होना जरूरी नहीं था।
कोर्ट का स्पष्ट रुख
हाईकोर्ट ने अंत में स्पष्ट किया कि RBI के दिशा-निर्देश अनिवार्य हैं और ऑडिटर की नियुक्ति कानून के अनुसार होनी चाहिए। साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा कि BDO LLP पहले बैंकों के लिए कंसल्टेंट के रूप में काम कर चुका था, जिससे हितों के टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है।
